प्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

कैलाश के बोल वचन-सत्ता बिन नहीं लग रहा मन।

मेट्रो और बैलगाड़ी तो सिर्फ प्रतीक है, बात तो जो कहानी थी कह गए कैलाश विजयवर्गीय। बात जहाँ तक पहुंचना थी पहुँच भी गयी और उसके असर में कैलाश का दूसरा बयान कथित इन्वेस्टमेंट और अफसरों के कामचलाऊ रवैये पर भी आ गया। फर्क सिर्फ इतना था कि पहने ट्वीट में संशोधन लगा,दूसरे बयान में संज्ञा के स्थान पर सर्वनाम का प्रयोग किया गया।

सवाल लाजमी है कि कैलाश को बोल वचन की जरुरत क्यों पड़ी?।
अपने राजनीतिक जीवन में कैलाश हमेशा सत्ता में रहे है,चाहे पार्षद रहे हो तो भाजपा का बोर्ड था,कुछ समय विपक्षी विधायक रहे फिर महापौर बन गए,फिर मंत्री बने रहे।
खूब जोड़तोड़ की,समीकरण बिठाए,समर्थन बड़ाया, पहचान बड़ाई, संघ और संगठन में पैठ बनाई पर मुख्यमंत्री नहीं बन सके।
अलबत्ता अमित शाह की नज़र में चढ़े तो राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए। मंत्री पद जाता रहा। यही से सत्ता से जुदाई शुरू हुई।
कैलाश के बयान के निहितार्थ में मेट्रो सत्ता का प्रतीक है और बैलगाड़ी संगठन का।
अपनी पीड़ा को लोकहित के मुल्लमे में पेश करने में कैलाश माहिर है। सत्ता के बिना उनका मन नहीं लग रहा है। महासचिव के रूप में उनकी उपलब्धि नगण्य है उलटे उन्हें भाजपा के निर्माणधीन मुख्यालय का बोरिंग काम थमा दिया गया है। दिल्ली उन्हें रास नहीं आ रही है।
सत्ता में जाने का रास्ता बनाया जा रहा है। उनके उद्योग मंत्री काल की सफल कहानियां सुनाई जा रही है।
इंदौर की राजनीति में अब ताई के बाद मालिनी भाभी से भी दो चार होना पड़ रहा है।
लब्बोलुबाब यह है कि कैलाश कमजोर हो रहे है लिहाजा सत्ता संजीवनी चाहिए। या तो प्रदेशबदर से निकल कर मंत्री बने या नजमा हेपतुल्ला की रिक्त राज्यसभा सीट पर दिल्ली जाकर मंत्री बने जो जल्द हो सके उस पर काम हो रहा है।
बहरहाल कैलाश की सत्ता यात्रा जारी है मगर अब उसमें इंदौरी तड़का गायब है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline