इंदौरप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेशहोम

ग्लोबल समिट-मध्यप्रदेश में पैसा लगाने में इतनी हिचकिचाहट क्यों?

इंदौर। मुख्यमंत्री खूब मेहनत कर रहे है, जमीन उपलब्ध है, सरकार रेड कारपेट स्वागत के लिए तैयार है,सरल प्रक्रिया -असीमित अवसर का जुमला चर्चा में है। फिर प्रदेश में अपेक्षित निवेश क्यों नहीं आ रहा है?। उत्तरप्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसा उत्साह उद्योगिक घराने क्यों नहीं दिखा रहे है।
सवाल लाजमी है लेकिन जबाब निचले स्तर पर काम कर रहा बाबूराज अपने आप दे देता है। अब भी दकियानूसी सोच और लचर कार्यप्रणाली जारी है लिहाजा ऊपर से जब निवेश जमीन पर आता है तो उसे मखमली कारपेट की जगह ऊबड़ खाबड़ जमीनी हकीकत से दो चार होना पड़ता है।
आखिर चुक कहा हो रही है।
इंदौर, पीथमपुर जैसी जगहों पर तो निवेश आ रहा है लेकिन महाकोशल,बुंदेलखंड,और चम्बल क्षेत्र इससे अछूते क्यों है। निवेश की और नज़र डालें तो पता चलता है कि सारा निवेश उच्च शिक्षा और एफएमसीजी में आ रहा है या बड़े ब्रांड यहाँ एसेसरी यूनिट लगा रहे है।
सवाल निवेश के साथ रोजगार का भी है। स्थानीय लोगों को इन निवेश से कितना रोजगार मिल रहा है यह अध्ययन का विषय है।
हर साल बड़े बड़े उद्योगपति आते है,जमीन और टेक्स,बिजली में रियायते हासिल करते है अपने पहले से स्थापित उद्योग में विस्तारित यूनिट को नवीन निवेश बताते है और अफसरों की मिलीभगत से लाभ लेकर चले जाते है।
मजेदार तथ्य यह है कि हर साल आने वाले निवेशक वही है, प्रस्ताव भी वही है,चेहरे भी वही है,जिनका प्रदेश में स्टेक है उन्हें तो आना ही है। खनिज,ऊर्जा,कपडा,दवाई,गैस आधारित उद्योग में प्रस्ताव ना के बराबर है।
सवाल उठता है कि बीते 13 साल में कितना निवेश आया,कितना एकदम नया निवेश आया,किन किन सेक्टर में आया,किन किन क्षेत्रो में आया,कितना रोजगार सृजन हुआ,कितना राजस्व बड़ा, कितनी सब्सिडी दी गईं, कितनी रियायते दी गई, इन सब पर श्वेत पत्र सरकार को जारी करना चाहिए। ताकि आम जन भी निवेश और ग्लोबल समिट के गुणा भाग को समझ सके।
बहरहाल कुपोषण,वित्तीय संकट और राजनीतिक असंतोष से जूझ रही सरकार, उसके मुखिया,और नौकरशाह चांदी की चम्मच से ऋण लेकर घी पीने की कहावत को चरितार्थ कर रहे है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline