poem samacharline |
मुझे समझ नहीं आता है !
ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय क्यों समझा जाता है ?
क्या इसीलिए कि इसका नैतिकता से नाता है ?
लालच की सीमा जब लांघ जाती है ईमान को ,
आय से अधिक संपत्ति का स्वामी खो देता है सम्मान को |
अच्छे ईमान का दिखावा हेतु ; छुपा देता है कमरों में ‘काले’ नोट ,
धन-संपत्ति की लालसा को शरण देकर ; पहुंचाता है स्वयं के ज़मीर को चोट ||
धन की देवी की पूजा भी करते हो और तिरस्कार भी ,
न दे सके अपने ईमान को यथर्थ आकार भी |
ईमानदारी की दवा ही इसका ईलाज है ,
सच्चे और अच्छे ईमान के बूते अच्छा समाज है ||
ईमानदारी जीवन मूल्य है , समाज की ज़रुरत है ,
बेईमानी अगर मिथ्या है तो ईमानदारी हकीकत है |
शुद्ध मन , अच्छे विचार एवं विकासशील समाज ईमान ही बनाता है ,
कर्म और धर्मं के महत्व को ईमान ही समझाता है |
धर्मं हमें ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है ,
समाज को अच्छी दिशा-दशा की और बढ़ाता है |
ईमानदारी की दवा अशुद्धता का ईलाज है ,
सच्चे और अच्छे ईमान के बूते अच्छा समाज है ||
~ आदित्य त्रिवेदी
( कवि समाचार लाइन के न्यूज़ एडिटर है | युवा कवि है | )