विशेषसाहित्य

दरिया, समंदर, सघन हवायें …… ! – ओजस

कविता समाचार लाइन |

अचल प्रेम की सुंदर बदरी,
घटायें इसकी उम्मीदें तकती.
प्रयास की ये मनोदशा है,
हताश ये ना किसी को करती.

यही प्रकृति की है ताजदारी,
दिखाती हमको रहस्य अपना.
दरिया, समंदर, सघन हवायें;
सिखाती हमको है प्रेम करना.

बड़े नाज में दरिया रहता,
हुंकार भरकर हमेशा कहता.
मै एक दरिया, मेरी दरियाई;
गहराई अपनी कभी ना छोडूं.

उसी का सदका;
उसी की जुर्रत,
उसी का आशिक,
उसी की रहमत.
वो मेरी सबकुछ;
मै उसका सबकुछ.

समंदर का प्रेम बहुत अचल है,
नदियां भले ही पीछे पड़ी हो.
ये रखता अपना प्रवाहतंत्र,
उसी का पीछा किया है करता.

दिन हो, दोपहरी, हो काली रातें,
रूकों कहीं ना तमाम उम्र;
सघन हवायें बताती हमसे,
जब तक मलिका नजर ना आये.

-अभिजीत पाठक  ‘ओजस ‘