प्रकाश त्रिवेदी की कलम सेभोपालमध्य प्रदेश

आखिर “अभिमन्यु” बना दिए गए अरविंद भदौरिया।

भोपाल। भाजपा के अंतःपुर में जो तय हुआ था ठीक वैसा ही हुआ। दीनदयाल परिसर में पसरे अरविंद भदौरिया के गुप्त शत्रुओं ने अटेर की कहानी पहले ही लिख दी थी। ग्वालियर-चम्बल की राजनीति को एक अभिमन्यु की बलि चाहिए थी। क्षत्रपों ने बहुत ही सलीके से अरविंद भदौरिया को रणभूमि में उलझाया और उनके लिए करीने से खन्दक भी खोद दी।
अटेर सत्यदेव कटारे की जागीर रहा है। कटारे को पहली बार भदौरिया ने ताकत से चुनोती दी थी और खम ठोंक कर विधानसभा में आ गए थे। हालांकि सत्यदेव 2013 में फिर जीत गए।
2008 और 2013 के बाद चम्बल में बहुत पानी बह गया था। अरविंद भदौरिया अपने संगठन कौशल और संघनिष्ठ पहचान के बल पर भोपाल में जड़े जमा चुके थे।
उनकी ताकत,क्षमता,और संबंधों के तिलिस्म अपना जादू बिखेर रहा था। पहले महामंत्री, फिर किसान मोर्चे में राष्ट्रीय महामंत्री जैसे पदों पर रहकर उन्होंने अपनी बिरादरी बनाना शुरू कर दिया था।
कप्तान सिंह सोलंकी की सरपरस्ती में उनका राजनीतिक सफर सही दिशा में अग्रेसर था।
मध्यप्रदेश रेड क्रॉस सोसायटी में जब उन्होंने दस्तक दी तभी से वे सत्ता के साकेत में अनपेक्षित हो गए थे।
इस लड़ाई में वे भाजपा के प्रदेश महामंत्री का पद भी हार गए।
सत्यदेव कटारे के निधन के बाद उन्हें लगा कि अटेर फिर उनका हो जाएगा। लेकिन चम्बल की राजनीति में ब्राह्मण-ठाकुर की लड़ाई ने उनकी बली ले ली।
भाजपा के ब्राह्मण नेता भी सतह पर ही सक्रिय रहे। ठाकुर उनके साथ थे पर भदावर में कुछ ठाकुर कांग्रेस के गोविंद सिंह के साथ सत्यदेव कटारे को श्रद्धांजलि देने में लग गए।
कांग्रेस की और से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मोर्चा संभाला पर मात्र 858 मतों की जीत ने उनकी उपस्थिति को फीका कर दिया।
अरविंद भदौरिया को अपनो ने ही हराया है। अटेर को जानने वाले बताते है कि उनकी क्षमता,संबंध,और कार्यशैली कइयों के किए चिंता का सबब थी। लिहाजा उनकी चिंता कांग्रेस से ज्यादा कतिपय भाजपाईयों को ही थी।
मुख्यमंत्री ने जरूर दम लगाया, अरविंद भदौरिया की पकड़ भी काम आई,लेकिन मतदान आते आते उन्हें अभिमन्यु की तरह घेर लिया गया।
अटेर में हमेशा डॉ. गोविंद सिंह एक फेक्टर रहे है। इस बार उन्होंने भी सत्यदेव कटारे को सच्ची श्रद्धांजलि दे दी।
बहरहाल एक जांबाज युवा नेता को किनारे कर दिया गया है। दो बार हारने के बाद उन पर कई सवाल भी खड़े कर दिए जाएंगे।
कुलमिलाकर बांधवगढ़ में शिवराज जीत गए लेकिन अटेर में संगठन हार गया।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline