देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम से

केजरीवाल – ईमान से बेईमान तक “आप ” की यात्रा।

वादे,इरादे,और वैकल्पिक राजनीति का मुलम्मा ओढ़कर राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल खुद ही सत्ता के साइड इफेक्ट के शिकार हो गए है। भाजपा,कांग्रेस के आरोप राजनीतिक हो सकते है पर खुद की सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा ने”दो करोड़”का आरोप लगाकर “आप”के प्रति जन विश्वास को “दो कौड़ी” का कर दिया है। केजरीवाल अब कसौटी पर है।
अन्ना हजारे की उंगली पकड़कर सत्ता के राजपथ पर आए केजरीवाल राजपथ को जनपथ में बदलते बदलते खुद ही सत्ता के मोहपाश में बंध गए और अन्ना हजारे की उंगली छोड़कर सत्ययेन्द्र जैन का हाथ थाम लिया।
सत्ता की मृग मरीचिका में फसकर केजरीवाल दिल्ली की जनता को कचरे और चिकनगुनिया में छोड़कर गोआ,पंजाब में राजनीतिक पर्यटन करने लगे।
खुद को पाक साफ मानकर केजरीवाल ने सभी नेताओं पर खूब आरोप लगाए। हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा और शुतुरमुर्ग मानसिकता का परिचय दिया।
अब केजरीवाल “वेंटिलेटर” पर है। कुमार विश्वास की दबी हुई राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागृत हो चुकी है। मोदी-अमित शाह की जोड़ी से खासे लाइनअप कुमार दिल्ली का नेतृत्व करने के लिए बेताब है।
भाजपा भी चाहती है कि उसके करीबी कुमार विश्वास कमान संभाले और दिल्ली में चल रही दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच की रस्साकशी को खत्म किया जा सके।
बहरहाल दिल्ली में आप सरकार खुद के मकड़जाल में ही उलझ गई है। ईमानदारी,शुचिता, पारदर्शी लोक व्यवहार दांव पर है। कमोवेश सभी आप विधायकों पर आरोप तारी है।
भारतीय राजनीति में आम आदमी की सत्ता का प्रयोग असफल हो गया है। जाहिर है चंद्रगुप्त की सत्ता पर चाणक्य का नैतिक नियंत्रण था लेकिन केजरीवाल ने खुद ही अन्ना की उंगली छोड़कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। दिल्ली को अब संमझ आया।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline