देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम से

बसपा के “मायाजाल” से मुक्त होती दलित राजनीति।

नई दिल्ली। नसीमुद्दीन सिद्धिकी के खुलासे के बाद बहुजन समाज पार्टी के अंदर चल रहा घमासान सामने आ गया है। उत्तरप्रदेश चुनाव में करारी हार के बाद दलित राजनीति में बसपा के विकल्प की तलाश शुरू हो गई है। गैर जाटव दलित तो पहले ही भाजपा का दामन थाम चुका है अब जाटव-चर्मकार जैसे दलित समाज भी बसपा से दूर होने लगे है। दलित राजनीति बसपा के “मायाजाल”से मुक्त होने को बेताब है।
दलित चेतना को राजनीति में ढालकर कांशीराम ने दलित वोटबैंक का जो करिश्माई फार्मूला ईजाद किया था वो अब बेअसर होने लगा है। कांशीराम के बाद मायावती से दलित चेतना को स्वाभिमान में बदलकर सत्ता सुख तो हासिल कर लिया लेकिन वे कांशीराम की तरह मिथक नही बन पाई। उनकी छवि दलित नायिका की बनती गई जो दलित वोटबैंक के सहारे सत्ता सुख भोगती रहीं। दलित महारानी जैसी छवि में कैद होकर मायावती ने कांशीराम का उत्तराधिकार तो प्राप्त कर लिया लेकिन वे दलितों के दिल मे स्थाई भाव नही बना पाई।
गौरतलब है कांशीराम के जमाने मे बसपा अखिल भारतीय दल बन गई थी। संसद और विधानसभाओं में बसपा का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा था। संसदीय और विधानसभाओं के चुनाव में भी पार्टी का वोट बढ़ रहा था।
कांशीराम के बाद मायावती के कार्यकाल में बसपा उत्तरप्रदेश तक ही सिमट गई। मायावती की कार्यशैली से असहमत होकर कई बड़े नेता पार्टी छोड़ते गए।
2012 के उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद से ही भाजपा और संघ ने समरसता प्रकल्प के बहाने दलित राजनीति पर फोकस करना शुरू किया। सबसे पहले मायावती से पीड़ित नेताओ को भाजपा में लाया गया,फिर गैर जाटव दलित जातियों के नेताओं को आगे किया गया। 2014 के लोक सभा चुनाव में दलितों ने भाजपा का दामन थामना शुरू कर दिया था।
मायावती के रवैये और टिकट वितरण में पैसे के लेनदेन ने बसपा के पतन की शुरूआत कर दी।
उत्तरप्रदेश चुनाव में करारी हार के बाद अब दलित राजनीति फिर संक्रमण के दौर से गुजर रही है। ज्यादातर गैर जाटव दलित जातियों ने भाजपा को अपना विकल्प मान लिया है। मायावती ने 100 मुसलमानों को टिकट देकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भी अपने दलित वोटबैंक को चिड़ा दिया था लिहाजा दलित मतदाता ने भी बसपा को मुंहतोड़ जबाब दिया।
बहरहाल दलित राजनीति पर भगवा मुल्लमा चढ़ने लगा है। महाराष्ट्र में रामदास आठवले भाजपा के साथ है। तमिलनाडु में भी भाजपा दलित नेताओं पर डोरे डालने में लगी है
कुलमिलाकर अम्बेडकरवाद को संघ ने दीनदयाल जी के एकात्मक मानवतावाद से मिलाकर नई दलित चेतना गढ़ दी है। देखना है मायावती अब कौन सा मायाजाल लेकर आती है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline