देशधर्मं/ज्योतिषप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

महाराजा छत्रशाल जयंती पर विशेष । सुशासन के “नायक” महाराजा छत्रशाल।

आजकल सुशासन की बहुत चर्चा होती है। लोकतंत्र में सुशासन की आदर्श परिकल्पना आना अभी बाकी है। लेकिन बुंदेलखंड केशरी महाराजा छत्रशाल ने अपने बुन्देलखण्ड राज्य में राजशाही में भी सुशासन को अपने राजकाज में मूलमंत्र बनाया।

आज महाराजा छत्रशाल जी का अवतरण दिवस है। उनकी वीरता,साहस,पराक्रम की खूब चर्चा होती रही है लेकिन उनके विशाल बुंदेलखंड राज्य जिसकी सीमा चम्बल-नर्मदा-बेतवा-टोंस नदियों की जल सीमा में विस्तारित थी के शासन प्रबंध पर ज्यादा प्रकाश नही डाला गया है।
राजी सब रैयत रहे,ताजी रहे सिपाही।
छत्रशाल के राज्य में बाल न बांका जाई
इस दोहे में उनके राजकाज का दर्शन झलकता है। अपने जीवनकाल में मुगलों से 52 लड़ाईयां जीतकर वे अजेय बने रहे। अपने आध्यात्मिक गुरू महामति प्राणनाथ जी की कृपा से उनको अपनी भूमि में-हीरा प्राप्त हुआ।
छत्ता तेरे राज में घरती धक धक होए।
जित, जित घोड़ा पग धरे उत,उत हीरा होए।
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में महामति प्राणनाथ जी के आशीर्वाद से आज भी हीरा निकल रहा है।
राज्य,भूमि,धन, बाहुबल, साहस,पराक्रम प्राप्त होने के बाद अजेय छत्रशाल जी ने अपने राज्य को प्रजाप्रेमी बनाया। उनके राज्य में प्रजा को केंद्र में रखकर शासन प्रणाली विकसित की गई। किसानों के लिए तालाब, नहरे, पेयजल प्रणाली,शिक्षा के लिए विद्यालय,मंदिर,सड़के बनाई गई। पन्ना,छतरपुर,नौगांव,सागर,
जैसे शहर बसाए गए। आधुनिक चिकित्सा और आयुर्वेद को सहज उपलब्ध कराया गया।
छत्रशाल के राज में कानून व्यवस्था चाक चौबंद थी। हिन्दू और मुसलमान दोनों सदभाव से रहते थे। आज भी बुंदेलखंड में साम्प्रदायिक सदभाव कायम है।
राजकाज का विकेंद्रीकरण था। कर प्रणाली लचीली थी। रोजगार सहज मिलता था। प्रकृति और पर्यावरण की चिंता भी छत्रशाल करते थे। उन्होंने सघन वनीकरण कराया। विंध्याचल पर्वत के पर्यावरण के अनुरूप संसाधन अपनाए और विकास को नई दिशा दी।
अपनी सेना को आधुनिक बनाया। सैनिक चिंतामुक्त होकर अपना दायित्व निभाए इसके लिए उन्हें और उनके परिवार को साधन संपन्न किया गया।
स्वयं पूर्णब्रह्म श्री कृष्ण के परम भक्त होने के बाद भी उनके राज्य में धार्मिक आजादी थी। वे कवि भी थे उन्होंने भक्ति रस की अनेक रचनाओं का सृजन किया। राजनय में वे माहिर थे। शिवाजी के राजनय से बेहद प्रभावित कवि भूषण जब छत्रशाल के दरबार मे आए तो उनके सुशासन को देखकर कह उठे।
शिवा को सराहो कि सराहो छत्रशाल को।
राजशाही में सुशासन के प्रणेता,लोक नायक महाराजा छत्रशाल को उनके अवतरण दिवस पर सादर प्रणाम ।।

प्रकाश त्रिवेदी ( लेखक के पूर्वज महाराजा छत्रशाल के राजपुरोहित रहे है ।)