देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

रेत में खिले “कमल”से हलाकान भाजपा की आंतरिक राजनीति।

भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंहन चौहान नर्मदा सेवा यात्रा के समापन पर अमरकंटक से अपनी मुट्ठी में जो “राजनीतिक रेत” भरकर लाए थे,वो रेत अब हाथ से फिसलने लगी है। नर्मदा के हरदा तट पर खिले”कमल” ने नर्मदा सेवा यात्रा की पुण्याई से बने शिवराज के रेत के महल को भरभरा दिया है।
यह जान लेना जरूरी है की अमरकंटक में नर्मदा सेवा यात्रा के समापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा के बाद उत्साह से लबरेज शिवराज ने आनन-फानन में नर्मदा से रेत उत्खनन पर रोक लगा दी। हालांकि इस आदेश के पीछे की कहानी में खुद उनपर और उनके खास लोगों पर ही रेत उत्खनन के आरोप पृष्ठभूमि में थे।
गौरतलब है कि नर्मदा का रेत माफिया और खनन विभाग ने मिलजुलकर खूब दोहन वैध और अवैध तरीके से किया है।
नर्मदा की चिंता करने वाले अनिल माधव दवे के असामयिक निधन के बाद बढ़ते दबाब के कारण शिवराज रेत माफिया के खिलाफ सख्त हुए है।
हरदा से पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री कमल पटेल ने जब राष्ट्रीय हरित अधिकरण में रेत उत्खनन के खिलाफ याचिका लगाई तो भाजपा की राजनीति में उबाल आ गया। शिवराज और कमल पटेल में युवा मोर्चे के समय से अदावत जारी है।
हरदा से चुनाव हारने के बाद लगातार हाशिए पर जा रहे कमल पटेल के पास आमने सामने की लड़ाई के अलावा कोई विकल्प बचा भी नही था।
पटेल ने अपनी याचिका में 5 हजार करोड़ के अवैध रेत खनन पर फोकस किया है। उनके आरोप वाया प्रशासन सरकार के गिरेबान तक पहुँच गए हैं।
कमल पटेल की याचिका को गंभीरता तब मिली जब उनके बेटे को कलेक्टर ने जिलाबदर कर दिया। कलेक्टर की कार्यवाई पर राजनीति नज़र आई तो सरकार ने कलेक्टर को हटा दिया। हालांकि सरकार की यह कार्यवाई पटेल को”अनुकूल” करने के लिए थी पर कमल पटेल का रवैया नहीं बदला, वे एनजीटी में जाने को लेकर और सख्त और सतर्क हो गए।
यहाँ से संगठन की भूमिका शुरू हुई। पटेल को सख्त भाषा मे कारण बताओ नोटिस दिया गया। अंदरखाने की खबर के अनुसार नोटिस के पहले केंद्रीय नेतृत्व से सलाह मशविरा करने की सहमति बनी पर नोटिस सोशल मीडिया पर वाइरल हो गया। नोटिस की भाषा को लेकर भी खूब चर्चा रही।
रेत उत्खनन से जुड़े घोटाले को लेकर सरकार एकाएक सतर्क और सजग हो गई है। रेत उत्खनन पर रोक के आदेश को जानकार विंडो ड्रेसिंग बता रहे है।
जानकारों के अनुसार मानसून में वैसे भी रेत उत्खनन बंद रहता है। रेत माफिया भंडारण करके रेत के मनमाने दाम लेते है। यद्यपि सरकार से खुद रेत बेचने और भंडारण पर लगाम लगाने की बात कही है तथापि रेत माफिया अभी भी बेलगाम है और सरकार के आदेश के बाद भी रेत उत्खनन कर रहा है।
बहरहाल रेत की राजनीति दिल्ली तक जा पहुंची है। कमल पटेल ने सारे दस्तावेजी सबूत संघ,संगठन, और सरकार के अलमबरदारों को दिए है। उनके निशाने पर वाया खनन माफिया-अफसर गठबंधन शिवराज ही है।
देखना है अमित शाह की रणनीति और मोदी का शुचितावाद क्या कार्यवाई करता है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline