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संविधान एक पवित्र ग्रन्थ है – प्रवीण कुमार देवलेकर

लेख समाचारलाइन |

भारतीय संविधान इस देश के सभी धर्मावलंबियों का ग्रंथ कहा जा सकता है। हमारी धार्मिक संस्कृतियां अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन हमारी राजनीतिक संस्कृति एक है। पिछले दिनों एक चर्चा ने बहुत जोर पकड़ा था- छविगृहों में राष्ट्रगीत बजाया जाना चाहिए या नहीं ।  विश्व के हर व्यक्ति को राष्ट्र भक्त होना ही चाहिये । लेकिन राष्ट्रभक्ति औपचारिक तरीकों से सिखाई या जागृत नहीं की जा सकती । देश में बेशुमार धर्मस्थल होनें के बाद भी बड़ी मात्रा में अनैतिक कार्य होते हैं। यही हाल इस औपचारिक राष्ट्रभक्ति से होने की आशंका है, बल्कि हुआ है, क्योंकि हममें से लगभग सभी बचपन से स्कूलों में राष्ट्रगीत गाकर व हर वर्ष 15 अगस्त व 26 जनवरी मनाकर बड़े हुए हैं और आज उन्हीं में से कईयों पर  भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, हममें से ही कईयों ने अपनी-अपनी औकात अनुसार भ्रष्टाचार कर लिया है और कई इसमें रत है.

    यदि नागरिकों को राष्ट्रभक्त बनाना है , तो उन्हें संविधान पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा।
हर नागरिक को मालूम होना चाहिए कि संविधान क्या है, उसमें क्या लिखा है, नागरिकों के मौलिक अधिकार क्या हैं, कर्तव्य क्या हैं, राज्य के लिए नीति निर्देशक तत्व क्या हैं, मौलिक अधिकारों का हनन करने का क्या परिणाम होता है, सुप्रीमकोर्ट के क्या अधिकार हैं, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच काम का बंटवारा कैसा है, कौnसे काम दोनों कर सकते हैं, इत्यादि।
      संविधान का ज्ञान न होने से हम गलत राजनैतिक पार्टियों को जितवाते हैं और देश का नुकसान करते है | संविधान को अच्छे से पढ़-समझ लेंगे तो सही व्यक्तियों को चुनेंगे । अभी हमने लोकतंत्र के तीन तत्वों- A Government of the people, by the people & for the people में से पहले के दो को पा लिया है । तीसरे को तभी पा सकेंगे , जब संविधान को एक पवित्र ग्रन्थ मानकर उसको पढ़ेंगे, समझेंगे और नेताओं, प्रशासकों को समझायेंगे । धर्म ग्रन्थों के पठन-पाठन से अगला जन्म सुधरता है या नहीं, यह शायद ही कोई दावे से कह सकता है, परन्तु यह दावा किया जा सकता है कि संविधान के पठन पाठन से यह जन्म ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के जीवन भी सुखमय हो सकता है।
प्रवीण कुमार देवलेकर
( प्रख्यात शिक्षक एवं विचारक )