देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

गुजरात चुनाव से मुसलमान गायब।

अहमदाबाद। गुजरात का चुनाव विकास से शुरू होकर राम मंदिर तक पहुंच गया है। राहुल गांधी ने भी अपनी शिव भक्ति जाहिर कर दी है। ब्राह्मण साबित करने के लिए जनेऊ धारी भी हो गए है। लेकिन गुजरात के 10 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं पर इस बार भाजपा कांग्रेस किसी का फ़ोकस नही है। एक तरह से राजनीतिक रूप से किनारे होते जा रहे मुसलमान आखिर क्या चाहते है?।

अहमदाबाद में ऑटो रिक्शा चला रहे अकबर मियां गुजराती मुसलमान की मन की बात बताते है,” जनाब हम सब कुछ भूलना चाहते है,हम चैन की रोटी खा रहे है,हमारे बच्चे पड़ रहे है,हमे ईलाज मिल रहा है,राशन अनाज मिल रहा है। हम सब गुजराती बहुत शांति से रह रहे है।”
अस्टोडिया दरवाजे पर फेमस भंजिए खा रहे परिमल भाई कहते है यह मुसलमान भाई की दुकान है लेकिन इनके 90 फीसदी ग्राहक हिन्दू है। भाई चारे को बने रहने दे साहिब।
गुजरात मे कोई भी गोधरा कांड को याद नही करना चाहता।
मुसलमान नेता इकबाल शेरानी कहते है,हम पर रहम करे,हमारे साथ राजनीति न करे,हमारे नाम पर दुकानदारी न चलाए। हम मोदी राज में खुश है।
गुजरात की मुसलमान राजनीति में अनेक रंग है। कुछ युवा आज भी
आग बबूले हो उठते है,उन्हें कांग्रेस भाती है पर कांग्रेस के भरोसे विधानसभा में नही जाया जा सकता है। कभी गुजरात विधानसभा में 16 विधायक मुसलमान होते थे,अब केवल दो है।
भाजपा तो खैर हेड काउंटिंग लीडरशिप के लिए मुसलमान नेताओं को जगह देती है। कांग्रेस भी साफ्ट हिंदुत्व के चक्कर मे उनसे किनारा कर रही है।
पत्रकार आबिद सुल्तान सटीक बात करते है। मुसलमान अब अपनी महत्वत्ता खो चुके है। उनके अंदर जितनी तेजी से पोलोराइजेशन होता है,उससे दो गुना ज्यादा पोलोराइजेशन हिन्दुओं में होता है। और यह सब कुछ इतना सहज होता है कि इसका समाज के जनजीवन पर असर दिखाई नही देता है।
एक समय गुजरात के लोकजीवन में मुस्लिम दबंगई बड़ा मुद्दा होता था अब बहुत की करीने से सार्वजनिक जीवन से किनारे किए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय भी चुपचाप शिक्षा,आर्थिक बेहतरी और स्तरीय रहन सहन की और ज्यादा ध्यान देना चाहता है। उसे राजनीति ज्यादा रास नही आ रही है पर उसकी नज़र बहुत पैनी है।
गोधरा की एक मस्जिद के बाहर बैठे मौलाना इमरान कहते है,जख्म गहरा है,पर तरक्की की मलहम से ठीक भी हो रहा है,गाहे बगाहे कुछ लोग जख्म कुरेदने का काम करते है,हमे उनसे क्या, हम अमन से जी रहे है जीने दे।
हालांकि अभी भी मुसलमान मतदाताओं की पसंद कांग्रेस ही है। पर मुसलमान लीडरशिप का अभाव एक रिक्तता भी पैदा करता है।
मुसलमान सरकार की सभी लोकलुभावन योजनाओं का लाभ ले रहे है,लिहाजा अब भाजपा के प्रति भी थोड़ा रुझान दिखता है,पर मुसलमान औरते जरूर मोदी के साथ दिखाई देती है।
वडोदरा के पानी गेट पर खरीदारी कर रही मुसलमान औरतें सामने लगे मोदी के होर्डिंग पर मुस्कराकर निगाह डालती है और आपस मे फुसफुसाती भी है।
उनमे से एक शबनम खुलकर कहती है,मोदी ने तीन तलाक और मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत अच्छा काम किया है। हम मोदी के साथ है।
बहरहाल इस बार गुजरात चुनाव में दलित चर्चा में है,पाटीदार चर्चा में है,ओबीसी चर्चा में है,लेकिन 10 फीसदी मुसलमान चर्चा से गायब है।
इसे राहुल के सॉफ्ट हिंदुत्व का इफेक्ट कहे या मोदी की सबका साथ सबका विकास नीति का असर, इसका निर्णय खुद मुसलमानों को ही करना है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com