भोपाल।
सूर्यकांत केलकर,मेघराज जैन,सुंदरलाल पटवा,प्रमोद महाजन, लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज राजनेताओं के साये में राजनीति का ककहरा सीखते सीखते शिवराज कब अपने समकक्षों से आगे निकल गए पता ही नही चला। कठोर डग पर सधे कदम चलने में माहिर शिवराज का सियासी सफर युवा मोर्चा से शुरू होकर विधायक,सांसद, युवा मोर्चे के प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा के सचिव, महासचिव, संसदीय बोर्ड के सदस्य तक पहुंचा। उनका यह सफर सियासी जमावट और सत्ता की साधना का प्रतिफल ही माना जाता है।
नर्मदा किनारे जैत गांव से श्यामला हिल तक सफर शिवराज ने अपनी विनयशील राजनीति,समर्पण की भावना और कड़ी मेहनत से तय किया है।
विजेंद्र सिंह सिसोदिया, विनय दीक्षित,कैलाश विजयवर्गीय, तुकोजीराव पंवार,प्रकाश सोनकर,बृजमोहन अग्रवाल,तपन भौमिक,शिव चौबे,विजय शाह,जैसे युवा मोर्चे के साथियों की टीम में शिवराज अलहदा थे,चुनावी राजनीति में जमीनी पकड़ रखने की आदत उन्होंने सुंदरलाल पटवा से सीख ली थी। संघ के प्रचारक सालिगराम तोमर से उन्होंने लोगो को साधने और अवसर पहचानने के गुण लिए।
90 के दशक में जब सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में सरकार बनी तब शिवराज मंत्री बन सकते थे लेकिन उन्होने संगठन का रास्ता अख्तियार किया।
संगठन की लाइन पर चलते चलते वे इतने कद्दावर हो गए कि जब बाबूलाल गौर को हटाने की बात चली तो उनके विकल्प में स्वाभाविक रूप से शिवराज का नाम सर्वसम्मति से सामने आया।
जब मुख्यमंत्री बने तो उम्मीद नही थी कि लंबे समय तक चल सकेंगे। धारणाओं को तोड़ना शिवराज का शगल रहा है। 13 साल राज कर उन्होंने राजनीतिक भाष्यकारों के अनुमान झुठला दिए।
लोकलुभावन राजनीति और लचीली प्रशासनिक कार्यशैली के कारण वे जल्द ही जननायक की श्रेणी में आ गए। गरीब,किसान,युवा,महिला,
अल्पसंख्यक,विद्यार्थी, मजदूर,कर्मचारी सबके लिए उनके पिटारे में कुछ न कुछ था लिहाज़ा खूब घोषणाएं की और उनपर अमल भी कराया। अपने निर्वाचन क्षेत्र में पांव पांव वाले भैया अब प्रदेश भर के भांजे भांजियों के मामा बन चुके थे।
कन्यादान,लाडली लक्ष्मी योजनाओं ने उनकी लोकप्रियता को बुलंदी दी और शिवराज प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में सबसे ज्यादा लोकप्रिय मुख्यमंत्री बन गए।
भाग्य वे अपने मन माफिक लिखाकर लाए है,इसीलिए मुकद्दर के सिकंदर है।
खूब आरोप लगे,व्यापम घोटाले ने छवि मलिन की,डंपर ने खूब छकाया पर अपने सियासी तप और सत्ता की साधना की बदौलत वे फिर से निखर कर सामने आ गए।
अब गए तब गए के समीकरण चलते रहे,शिवराज राजकाज करते रहे,किसान नाराज हुए तो उनके लिए पिटारा खोल दिया,कर्मचारियों ने आंख दिखाई तो उनके वारे न्यारे कर दिए। शिवराज के पिटारे में सब के लिए कुछ न कुछ है।
पहले वल्लभ भवन में पैर जमाए फिर दीनदयाल परिसर में नियंत्रण हासिल किया। केंद्रीय नेतृत्व को साधा तो संघ के एजेंडे को लागू कर संघ प्रिय भी बन गए।
शिवराज ने अपने विरोधियों को भी खूब उपकृत किया। मीडिया को मैनेज किया,वफादार अधिकारियों की कोटरी बनाई,मंत्रियों पर लगाम कसी और भाजपा संगठन पर हावी हो गए।
शिवराज दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी है उन्होंने दर्शन के सिद्धांतों का राजनीति में प्रयोग किया और सफलता हासिल करते रहे।
पार्टी के अंदर और बाहर की चुनोतियों से दो दो हाथ कर उन्होंने सबको अपने अनुकूल कर लिया।
बहरहाल शिवराज आज भाजपा और मध्यप्रदेश दोनो के लिए अपरिहार्य बने हुए है। तमाम झंझावतों के बीच अपनी डगर पर चलते रहे अब उनके ही नेतृत्व में चोथी बार भाजपा सत्ता में वापसी के लिए चुनाव मैदान में उतरेगी।
तीन बार अपने कंधो पर भाजपा को सत्ता के साकेत में लाने वाले शिवराज चोथी बार नए बल्लभ भवन के सीएम ऑफिस भी नजर आएंगे उनके जन्मदिन पर यही कामना की जा सकती है।
प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com