भोपाल। कमलनाथ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राजनीति के अन्तःपुर में यह प्रश्न जबाब खोज रहा है कि क्या कमलनाथ-सिंधिया की केमेस्ट्री शिवराज का चुनावी गणित बिगाड़ पाएगी या इस केमेस्ट्री में कैटेलिस्ट दिग्विजय सिंह अपने खास “रसायन” से 2008,2013 जैसे साइड इफेक्ट पैदा करेंगे जो भाजपा के लिए एंटीवायरस साबित होंगे।
कमलनाथ का प्रदेश की राजनीति की मुख्यधारा में आकर जमीनी संघर्ष करना भाजपा और कतिपय कांग्रेस नेताओं को पच नही रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों की नजर में यह शिवराज के सामने कमजोर गेंदबाज की एंट्री हैं, भाजपा का मानना है कि कमलनाथ की जनस्वीकार्यता नही है वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भी पहली पसंद नही है,अलबत्ता वे नेताओं के नेता है। राजनीतिक विश्लेषक उन्हें टू टायर सिस्टम का नेता मानते हैं।
जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर जनमानस और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह और आकर्षण है,उनका ग्वालियर-चम्बल-मालवा-निमाड़-मध्यभारत में गहरा प्रभाव है।
भाजपा और शिवराज दोनों ही महाराज के आने से चिंतातुर थे,महाराज का मुकाबला करना शिवराज के लिए असहज था जबकि कमलनाथ को शिवराज के सिपहसालार आसान प्रतिद्वंद्वी मान रहे है।
प्रदेश की राजनीतिक परस्थितियां 1993 के विधानसभा चुनाव जैसी है,तब आत्ममुग्ध पटवा जी को मेहनती दिग्विजय सिंह ने परास्त कर दिया था। उस समय कांग्रेस की जीत भाजपा के लिए सदमा ही थी।
अब भी वातावरण वैसा ही है,सरकार के खिलाफ मानस बना हुआ हैं, इसके भी आगे विधायकों-मंत्रियों के प्रति एन्टीईनकंबेंसी ज्यादा दिखाई दे रही है। सवर्ण तबका खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
कुल मिलाकर वातवरण कांग्रेस को जमीन उपलब्ध करा रहा है सवाल उठता है क्या कमलनाथ-सिंधिया भाजपा के चुनाव प्रबंधन का मुकाबला करने लायक़ मेकेनिज्म तैयार कर पायेंगे?,
क्या जीतने वाले उम्मीदवारों को गुटीय राजनीति के ऊपर तरजीह दी जाएंगी?, क्या सिंधिया-कमलनाथ की केमेस्ट्री दिग्विजय-पचौरी-अजय सिंह-अरुण यादव-कांतिलाल भूरिया,जैसे दिग्गज़ों को एडजस्ट कर जिताऊ रणनीति बना पाएंगी।
सवाल बहुत है जबाब कम है। समय भी कम है 230 विधानसभा क्षेत्र है, जबकि चुनाव लिए इतने दिन भी नही बचे है।
कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस का दुरस्तीकरण करना होगा। अनुभवी,ऊर्जावान,प्रभावशाली,जनस्वीकार्य टीम बनाना होगी। जिला और ब्लॉक स्तर तक अब मंडलम तक सोए पड़े कांग्रेस के आम कार्यकर्ता को जगाना पड़ेगा,एनएसयूआई, युवा कांग्रेस,महिला कांग्रेस,सेवादल,को जिंदा करना पड़ेगा,कार्यक्रम और दौरे तो करना ही है।
इतना सब कुछ करने के लिए समन्वय बनाकर प्रदेश कांग्रेस को चलाने के लिए भी टीम चाहिए।
कमलनाथ और सिंधिया के लिए काम बहुत है।
कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए बाला बच्चन, जीतू पटवारी,रामनिवास रावत,और सुरेंद्र चौधरी तेजतर्रार और मेहनती तो है पर गुटीय राजनीति के दांव पेंच से बचकर काम करना होगा ताकि अपने प्रभाव क्षेत्र में बेहतर परिणाम ला सके।
जहाँ शिवराज 24×7 चुनावी मोड़ में है,भाजपा की दो दौर की तैयारियां हो चुकी है,विधानसभा क्षेत्रों में विस्तारक भेजे जा चुके है,पन्ना प्रमुख स्तर पर वर्ग प्रशिक्षण हो चुके है,बूथ पर समितियां बन गई है।
यानी अस्त्र-शस्त्र से लैस मोदी और शिवराज की लोकप्रियता पर सवार भाजपा से कमलनाथ और सिंधिया अपनी टीम के साथ कितना मुकाबला कर आएंगे इसका आकलन करना राजधानी के गलियारों का प्रिय शगल बना हुआ है।
बहरहाल सिंधिया का चेहरा,कमलनाथ का प्रबंधन और दिग्विजय की रणनीति कितनी सफल होगी,अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com