प्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

शिवराज सरकार के लिए वाटर लू बन गया है,मंदसौर।

 

भोपाल। मंदसौर और शिवराज की कुंडली मेल नही खा रही है,किसान आंदोलन,राहुल गांधी की सभा,और अब मासूम बालिका से दुष्कृत्य। शिवराज सरकार और भाजपा तीनो की मुद्दों पर ट्रोल हो गई है। प्रशासनिक पोलपट्टी और पॉलिटिकल मिस हैंडलिंग के कारण मंदसौर भाजपा और शिवराज सरकार के लिए वाटर लू साबित होने जा रहा है।

मंदसौर और भाजपा का पहले भी खट्टा मीठा रिश्ता रहा है, 1993 में भी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मंदसौर में गरोठ को जिला बनाने के आंदोलन की तपिश से भाजपा झुलस चुकी है,उसी दौरान पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के गृह नगर कुकड़ेश्वर में भी धर्म स्थल गिराने के विवाद में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशअध्यक्ष दिग्विजयसिंह में वहाँ बड़ा आंदोलन किया था। जबाब में पटवा जी ने जनता कर्फ्यू लगवा दिया था,उस समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पानी तक नही मिला पर चुनाव में प्रदेश की सत्ता जरूर मिल गई।

मंदसौर को भाजपा संगठन भी ठीक से टेकल नही कर पा रहा है,मालवा के इस क्षेत्र में मंदसौर-नीमच दो जिले है,दोनो में भाजपा नेताओं में शुरुआत से गुटबाजी है,पहले पटवा- लक्ष्मीनारायण पांडेय खमे की जद्दोजहद हमेशा सुर्ख़ियो में रही है।

अब हालात बद से बदतर है, भाजपा नेताओं का मनमुटाव चरम पर है। इसी की परिणीति है कि तमाम असमाजिक तत्वों को एक दूसरे के खिलाफ इस्तमाल किया जा रहा है।
मासूम बालिका दुष्कृत्य मामले में सांसद सुधीर गुप्ता और विधायक यशपालसिंह सिसोदिया की भूमिका की खुली आलोचना हो रही है।
इस बीभत्स मामले में राजनीति करने वाले भाजपा नेताओं को मुंह की खानी पड़ी है।
भाजपा के संभागीय संगठन मंत्री को भोजन में चम्मच न मिलने की चिंता तो सताती है पर मंदसौर-नीमच में भाजपा संगठन में लग रहे दीमक के इलाज के लिए उनकी कोई रुचि नही है।
मंदसौर-नीमच प्रशासन कि लचरता और असमाजिक तत्वों के साथ मेलमिलाप का ही परिणाम है कि इस तरह की घटना हो जाती हैं। पूर्व में भी जब समुदाय विशेष के युवकों में मंदसौर में उत्पात मचाया था,गाड़ियां तोड़ी थी तब भी भाजपा और सरकार की भूमिका संदिग्ध ही थी,परिणामस्वरूप मंदसौर की जनता ने समुदाय विशेष के पर्वो पर मुकम्मल बंद रखकर अपनी नाराजगी और समाज मे बड़ती गहरी खाई को उजगार कर दिया था। तब भी भाजपा और संघ के कर्ताधर्ताओं को समझ नही आई।
किसान आंदोलन मे पठानों की भूमिका सामने आने के बाद भी भाजप के नेता डेमेज कंट्रोल नही कर पाए। जिले में बंसीलाल गुर्जर और देवीलाल धाकड़ जैसे किसान नेता भी किसान आंदोलन की भनक नही पा सके।
मंदसौर में कार्यरत रहे एक संघ अधिकारी की भी असमाजिक तत्वों को बढ़ावा देने की शिकायतें हुई पर संघ और भाजपा दोनो ने कान नही दिए।
मंदसौर में दुर्भाग्य से पुलिस और प्रशासनिक ख़ौफ़ भी खत्म हो गया है।
मंदसौर-नीमच मध्यप्रदेश में भाजपा के लिए कमजोर कड़ी बनता जा रहा है,कांग्रेस को यहाँ से राजनीतिक उर्वरता मिल रही है,1993 में दिग्विजयसिंह भी मंदसौर की मिट्टी माथे पर लगाकर वल्लभ भवन में दाखिल हुए थे।
1993 की पुनरावृत्ति होने की सम्भवना लग रही है। मंदसौर जनसंघ,भाजपा और संघ का गढ़ है, इस गढ़ में रिसाव शुरू हो चुका हैं, विचारधारा के पैबंद पर सत्ता की ठसक भारी पड़ रही है।
शिवराजसिंह जी मंदसौर को संभालिए नहीं तो शिवना की उमड़ती लहरे सरकार को बहा ले जाएगी।
मंदसौर से मालवा में राजनीतिक बयार बहती है, कांग्रेस इन बयार पर सवार होकर भोपाल पहुंचने की जुगत में है, मालवा से प्रदेश की सत्ता तय होती है,1993-98 इसके उदाहरण है।
बहरहाल मंदसौर सुलग रहा है,इसकी आग को बुझाना जरूरी है।
महाकाल भक्त शिवराजसिंह को बाबा पशुपतिनाथ की नगरी से चुनोती मिल रही है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.con