उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के अफलातून कुलपति डॉ. शीलसिन्धु पांडे अपनी बेतरतीब कार्यशैली से विक्रम विश्वविद्यालय परिक्षेत्र की 29 विधानसभा सीटों पर भाजपा को हराने की आधारभूमि तैयार करने में लगे हैं।
आश्चर्यजनक रूप से उनके इस गुप्त उद्देश्य में भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी और विद्यार्थी परिषद के जिम्मेदार उनका संरक्षण कर सहयोग कर रहे है।
जानकर सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ले प्रति सॉफ्ट कार्नर रखने वाले कुलपति अपने कार्यकाल के आखिरी साल में कांग्रेस नेतृत्व को खुश कर अगले निजाम में अपनी जगह बनाना चाहते है।
कुलपति के निकटवर्ती सूत्र बताते है कि उनकी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से निकटता है। उनके पिता डॉ. घनश्याम पांडे के भी कांग्रेस के बड़े नेताओं से निकट रिश्ते है।
डॉ. पांडे अपने उत्तरप्रदेश कनेक्शन और विद्यार्थी परिषद से भाजपा के अलंबरदार बने कुछ नेताओं को साधकर विक्रम कुलपति बन गए थे।
जब से डॉ. पांडे कुलपति बने है विश्विद्यालय में प्रशासनिक,अकादमिक अराजकता बनी हुई है।
परीक्षा समय पर नही,परिणाम में देरी,शोधकार्य ठप्प,कोई नए कोर्स नही उल्टे विश्वविद्यालय का सबसे अच्छा फार्मेसी कोर्स इस साल शून्य वर्ष घोषित।
शिक्षक नाराज,अधिकारी-कर्मचारी असंतुष्ट, छात्र हैरान-परेशान।
सवाल उठना लाजमी है कि कुलपति ऐसा क्यों कर रहे है। अंदरखाने की ख़बर है कि उन्हें अपने जबलपुर कनेक्शन के कांग्रेसी मित्रों के प्रति वफादारी निभानी है और भाजपा की आंतरिक राजनीति में उनके तार शिवराज विरोधियों से जुड़े है।
गौरतलब है कि कुलपति सांसद, विधायक,मंत्री,भाजपा के जिम्मेदार नेताओं में से किसी की भी नही सुनते है,वे सिर्फ विद्यार्थी परिषद से भाजपा में आए प्रदेश पदाधिकारियों की सुनते है या परिषद को भाजपा में आने की सीढ़ी मानने वाले कतिपय परिषद पदाधिकारियों की बात मानते है।
इन नेताओं से जुड़े कुछ भाजपा नेता दिनभर कुलपति के कक्ष में बैठकर शिवराज को कोसते है और अपने कथित भाई साहब का राग अलापते रहते है।
बहरहाल विक्रम परिक्षेत्र में 29 विधानसभा सीटे है। पूरे क्षेत्र के विद्यार्थी और पालक हैरान-परेशान है,परीक्षा,शिक्षण शुल्क,परिणाम, और फार्मेसी विभाग के जीरी ईयर ने भाजपा के प्रति नाराजगी पैदा की है।
मालवा की संवेदनशील राजनीति में शिवराज और भाजपा को बदनाम करने का यह नियोजित प्लान है।
कुल मिलाकर विधानसभा चुनावों में कशमकश की लड़ाई में कुलपति की कार्यशैली भाजपा पर भारी पड़ सकती है। पता नही क्यो संगठन कुलपति पर लगाम न लगाकर व्यक्ति विशेष के राजनीतिक उपक्रम में मददगार साबित हो रहा है।
प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com