भोपालमध्य प्रदेश

जून 2019 से होने लगेगी खाद्य पदार्थाें में बैक्टीरिया व फंगस की जांच

भोपाल। प्रदेश में खान-पान की चीजों में जीवाणुओं की मौजूदगी की जांच अगले साल जून से होने लगेगी। इसके लिए राजधानी के ईदगाह हिल्स स्थित राज्य खाद्य प्रयोगशाला में माइक्रोबायोलॉजी लैब बनाई जा रही है। लैब बनाने के लिए केन्द्र सरकार ने डेढ़ करोड़ रुपए दिए हैं।

इतनी ही राशि राज्य सरकार ने पिछले हफ्ते स्वीकृति कर दी है। इस राशि से लैब को अपग्रेड किया जाएगा। सबसे पहले मौजूदा खाद्य लैब के कुछ हिस्से का जीर्णोद्धार किया जाएगा। इसके बाद मशीनों की खरीदी की जाएगी।

नई माइक्रोबायोलॉजी लैब की मशीनें अत्याधुनिक होंगी। उनके लिए निश्चित जगह, प्लेटफार्म व एसी लगाना होगा। सिविल कार्य पूरा होने के बाद उपकरण व जांच के लिए केमिकल्स की खरीदी व मशीनें लगाने में करीब छह महीने लगेंगे। खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अफसरों के मुताबिक अगले साल जून तक लैब शुरू होने की उम्मीद है।

ये जांचें होंगी

– सीवेज के पानी से उगाई जानी वाली सब्जियों में बैैक्टीरिया की मौजूदगी पता की जा सकेगी। यह भी मालूम हो जाएगा कि कौन सा बैक्टीरिया है।

– ज्यादा दिन से रख्ाी खाने की चीजों में फंगस लग जाते हैं। इसकी जांच हो जाएगी।

– पेय पदार्थों में जीवीणुओं की मौजूदगी की जांच हो जाएगी।

– पीने के पानी में भी खराबी की जांच हो जाएगी।

– सामग्री खराब मिलने पर निर्माता व विक्रेता पर कानूनी कार्रवाई की जा सकेेगी।

अभी यह हो रहा

फूड सेफ्टी एवं स्टैंडर्ड एक्ट के अनुसार सभी राज्यों में खान-पान की चीजों में जीवाणुओं की मौजूदगी जांचने के लिए लैब होना जरूरी है। एक्ट लागू हुए सात साल हो गए हैं, पर अभी तक राज्य में माइक्रोबायोलॉजी लैब नहीं बन पाई। ज्यादातर राज्यों में लैब बन गई है। जहां लैब नहीं है उन राज्यों ने निजी लैब से अनुबंध किया है। मध्यप्रदेश में इंदौर की लैब से अनुबंध किया गया था, पर यह अनुबंध साल भर भी नहीं चल पाया। अभी खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को चीजों में जीवाणु मौजूद होने का अंदेशा होता है तो उसे नष्ट करा दिया जाता है। हालांकि, ऐसे में विक्रेता के ऊपर किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती।

खतरनाक हो सकती है जीवाणुओं की मौजूदगी

एलएन मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.आदर्श वाजपेयी ने कहा कि खान-पान की चीजों में बैक्टीरिया की मौजूदगी जानलेवा तक हो सकती है। इससे बैक्टीरिया पेट में पहुंचने से आंतों में सूजन, टायफाइड, उल्टी-दस्त, पैंक्रियाइटिस,एसिडिटी, समेत कई तरह की दिक्कत हो सकती है। फूड पाइजनिंग का समय पर इलाज नहीं हो तो यह जानलेवा भी हो सकती है।

इनका कहना है

राज्य से डेढ़ करोड़ मिल गए हैं। हाल ही में इसके लिए प्रशासनिक स्वीकृति जारी हो गई है। अब सिविल कार्य के लिए टेंडर जारी होने हैं। माइक्रोबायोलॉजी लैब बनने से खान-पान की क्वालिटी बेहतर होगी।

बृजेश सक्सेना, संयुक्त संचालक, खाद्य एवं औषधि प्रशासन