मथुरा में जन्म लेकर गोकुल में लीला रचाने वाले श्रीकृष्ण की शिक्षा अवंतिकापुरी में हुई थी। मथुरा में कुलगुरु गर्ग ने विधि-विधान के साथ उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया और उसके बाद श्रीकृष्ण की शिक्षा से संबंध में निर्णय हुआ। श्रीकृष्ण को सांदीपनि मुनि के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजने का निर्णय लिया गया। महर्षि सांदीपनि उस समय प्रकांड विद्वान और कई विद्याओं के जानकार थे।
काशीवासी थे महर्षि सांदीपनि
महर्षि सांदीपनि मूलत: काशी के निवासी थे। इनके पिता का नाम संदीपन था। एक समय महर्षि व सांदीपनि तीर्थयात्रा और पर्वस्नान के उद्देश से अवंतिकापुरी में पधारे थे। देवयोग से उस समय भीषण गर्मी में महाकुंभ अपने चरम पर था। उस समय अवंतिका क्षेत्र में कम बारिश होने की वजह से जनमानस अकाल का सामना कर रहा था। शिप्रा के तट पर सिंहस्थ सजा हआ था इसलिए कई संत-महात्मा इसका लाभ लेने के लिए आए हुए थे, लेकिन बड़ी संख्या में संतों के जमावड़े के बावजूद सांदीपनि मुनि का ज्ञान और तेजस्विता दूसरे ऋषियों से अलग थी। इस वजह से श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनकी ओर आकृष्ट हो रहे थे। अवंतिकापुरी के निवासियों से अकाल की अपनी पीड़ा से गुरुवर को अवगत करवाया। लोगों की तकलिफों को समझकर महर्षि ने तपस्या का प्रण किया और घोर तपस्या में लीन हो गए।
सांदीपनि ने उज्जैन को करवाया था अकालमुक्त
मुनिवर की तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती के अनुरोध पर शिव प्रगट हुए और मुनिश्री से इच्छित वर मांगने को कहा। सांदीपनि मुनि ने अवंतिका क्षेत्र के अकाल को दूर करने का महादेव से आग्रह किया। तब महादेव ने वरदान देते हुए कहा कि ‘इस नगरी में अब कभी भी अकाल नहीं पड़ेगा और यह समूचा क्षेत्र मालवा के नाम से प्रसिद्ध होगा।’ और गुरु सांदीपनि से कहा कि ‘तू भी मेरी आराधना करते हुए इसी नगरी में निवास कर । आने वाले समय में श्रीकृष्ण और बलराम तेरे शिष्य बनेंगे और तेरे मृत पुत्र को यमलोक से लाकर तुझको देंगे।’ इसके बाद से अवंतिका क्षेत्र से अकाल की छाया हमेशा के लिए समाप्त हो गई और मालवा क्षेत्र समृद्ध और वैभवशाली हो गया। इसलिए कहा गया है।
सर्वे देशा भूषिता मालवीवैस्यर्वेविज्ञा भूषिता मालवीयै: ।
सर्वे धर्मा आश्रिता मालवीयै: सर्वाविद्या आश्रिता मालवीयै:।।
सभी देश मालवावासियों से भूषित है। सभी विज्ञजन मालवियों से शोभित है। सभी धर्म मालवियों से आश्रित है और सभी विद्याएं मालवियों द्वारा आश्रित है।