भोपाल। शताब्दी एक्सप्रेस अपनी रफ्तार से भी कहीं ज्यादा तेजी से पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है। ट्रेन के स्टेशनों पर खड़े रहने मात्र से ढाई गुना ज्यादा वायु और दो गुना ज्यादा ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है। इससे रेलवे स्टेशनों पर मौजूद लोगों और ट्रेन में सफर करने वाले हजारों यात्रियों के साथ ही रेलवे कर्मचारियों व अधिकारियों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।
इस बात का खुलासा सोमवार को पर्यावरणविद् व वैज्ञानिक डॉ. सुभाष सी. पांडे की लाइव रिपोर्ट में हुआ है। डॉ. पांडे ने नई दिल्ली से हबीबगंज स्टेशन तक चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस गाड़ी संख्या 12002 के वायु और ध्वनि प्रदूषण की जांच की। इस दौरान वायु प्रदूषण के कारक खरतनाक पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 और पीएम 10 निर्धारित मात्रा से ढाई गुना अधिक पाए गए। इतना ही नहीं, बल्कि प्लेटफार्म के बीच में भी डेढ़ गुना ज्यादा वायु प्रदूषण दर्ज किया गया।
ऐसे हुई ट्रेन की जांच
सोमवार दोपहर 2.15 बजे हबीबगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 पर शताब्दी के आने से पहले वायु और ध्वनि प्रदूषण को मापा गया। इस दौरान ध्वनि प्रदूषण निर्धारित मापदंड में पाया गया और वायु की शुद्धता भी तय मानकों
में पाई गई। इसके बाद प्लेटफार्म नंबर-एक पर ट्रेन अपने निर्धारित समय 2.25 बजे से 14 मिनट देरी से पहुंची। 3.39 बजे प्लेटफार्म पर दोबारा जांच की गई। साथ ही गाड़ी के अंतिम डिब्बे (जहां जनरेटर लगा रहता है) तक जाकर जांच की गई। इस दौरान प्लेटफार्म पर वायु प्रदूषण सामान्य से दो गुना तक पाया गया। डॉ. पांडे ने बताया कि इस मामले में रेलवे प्रशासन दोषी है। जब से शताब्दी को शुरू किया गया तब से गाड़ी में लगे पुराने डीजल जनरेटर का मेंटेनेंस नहीं किया गया। जबकि नया जनरेटर लगाया जा सकता है।
क्या है नुकसान
डब्ल्यूएचओ की साल 2005 में जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) निर्धारित मात्रा में ज्यादा होने से हार्ट अटैक, फेफड़ों का कैंसर, आंखों में लगातार होने वाली जलन, त्वचा रोग, खून में मिलने के कारण बल्ड कैंसर होता है। अस्थमा बीमारी के मरीजों के लिए यह जानलेवा है। इनकी निर्धारित मात्रा जहां ज्यादा हो, वहां 5 साल से कम और 80 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों को नहीं जाना चाहिए। दोनों ही वर्गों पर हानिकारक असर पड़ता है।
इस मशीन से हुई टेस्टिंग
वायु प्रदूषण की सटीक जानकारी देने वाली इस मशीन का नाम पोर्टेबल एरोक्वाल एस-500 मशीन है। 2 लाख 57 हजार कीमत की इस मशीन को हॉकलैंड (न्यूजीलैंड) से बुलवाया गया है। इससे विश्व में वायु प्रदूषण मापने का सबसे उन्नात तकनीकी यंत्र माना गया है। इसी कारण विदेशों में सरकारी एजेंसियां इसी उपकरण से वायु प्रदूषण की जांच करती हैं। डॉ. पांडे ने बताया कि दिल्ली के पर्यावरण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी मशीन से जांच के निर्देश दिए थे।
प्रदूषण की बात सही
शताब्दी एक्सप्रेस के पावरकार कोच से ध्वनि व वायु प्रदूषण की बात सही है। रेलवे द्वारा कराए गए रिसर्च में ये बातें पहले ही संज्ञान में आ चुकी हैं। जल्द ही ये कोच बदले जाएंगे – शोभन चौधुरी, भोपाल रेल मंडल