हाटपीपल्या (देवास)। नगर के नृसिंह घाट स्थित भमोरी नदी में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी डोल ग्यारस पर गुरुवार को भगवान नृसिंह की साढ़े सात किलो वजनी पाषाण मूर्ति तैराई गई। इस नजारे को देखने के लिए क्षेत्र सहित दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे। शाम को जुलूस के बाद नृसिंह घाट पहुंचकर 5 बजकर 45 मिनट पर पुजारी ने मूर्ति तैराई। इस बार भी मूर्ति पानी में तीनों बार तैरी। ऐसी मान्यता है यदि मूर्ति तीनों बार पानी में तैरती है तो आगामी वर्ष सुखद रहेगा।
नृसिंह मंदिर से आकर्षक रूप से सजाए गए डोल में मूर्ति को विराजित किया गया। इसके बाद नृसिंह मंदिर सहित लक्ष्मीनारायण मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, श्रीकृष्ण मंदिर, श्रीराम मंदिर सहित अन्य मंदिरों के डोल मुखर्जी चौक पर एकत्रित हुए। यहां से सभी डोलों का अखाड़ों के साथ चल समारोह प्रारंभ हुआ। चल समारोह के दौरान अखाड़े के कलाकारों ने हैरतअंगेज करतब दिखाए।
अखाड़े, बैंडबाजे और ढोल-ढमाके के साथ निकले चल समारोह में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। शाम करीब पौने छह बजे डोल नृसिंह घाट पहुंचे। सभी मंदिरों के डोल को जल में झुलाकर पुजारियों ने नदी में स्नान किया और भगवान की आरती की। नृसिंह मंदिर के पुजारी पंडित रमेशदास वैष्णव ने नदी में गंगाजल छिड़का और दीपक प्रवाहित किया। पुष्पमाला अर्पित करने के बाद पुजारी वैष्णव ने पाषाण मूर्ति को जैसे ही नदी में छोड़ा वह तैरने लगी। आम धारणा है तीनों बार मूर्ति के तैरने पर कई दृष्टि से आगामी वर्ष सुख, समृद्धि से भरा होता है।
पुष्पमाला चढ़ाने की बोली 1 लाख की लगाई
मूर्ति को तैराने के बाद पुष्पमाला चढ़ाने की बोली 1 लाख 1 हजार रुपए उद्योगपति यशराज टोंग्या ने लगाई। स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी, जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्रसिंह राजपूत, पाठ्य पुस्कर निगम अध्यक्ष रायसिंह सेंधव सहित क्षेत्र एवं दूर-दराज से आए हजारों श्रद्धालु मौजूद थे।
151 साल से भी ज्यादा पुराना है इतिहास
नदी में भगवान नृसिंह की मूर्ति तैराने का इतिहास 151 साल से भी ज्यादा पुराना है, तबसे लगातार हर साल यह आयोजन होता आ रहा है। बुजुर्गों के अनुसार करीब 100 साल पहले तत्कालीन होलकर महाराज की जिद पर मूर्ति को चौथी बार तैराने का प्रयास करने पर वह लुप्त हो गई थी। इसके बाद करीब सवा माह की खोजबीन के बाद भी नहीं मिली थी। एक दिन मंदिर के पुजारी को स्वप्न में मूर्ति सैंधला नदी में दिखाई दी। इसके बाद मूर्ति को नदी से निकालकर धूमधाम से मंदिर में लाकर प्रतिष्ठित किया गया