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शिप्रा में भी प्रवाहित की थी गांधीजी की अस्थियां, शहर में नहीं उनके नाम का मार्ग

उज्जैन। देश 2 अक्टूबर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का 150वां जयंती वर्ष मनाने जा रहा हैं। मगर कम लोग जानते हैं कि गांधीजी का उज्जैन से भी नाता रहा है। गांधीजी के निधन के बाद उनकी अस्थियां देश की पवित्र नदियों सहित मोक्षदायिनी शिप्रा में भी प्रवाहित की गई थीं। हालांकि शहर में उनके नाम से कोई मार्ग तक नहीं है। अब गांधीवादी विचारधार के लोग इसकी मांग उठाने लगे हैं।

तत्कालीन कांग्रेस नेता सिताराम जाजू, उज्जैन के राधेलाल व्यास और शिवपुरी के स्वतंत्रता सेनानी प्रेमनारायण नागर महात्मा गांधी का अस्थि कलश 12 फरवरी 1948 को उज्जैन लाए थे। रामघाट पर गांधीजी की अस्थियों का विसर्जन किया गया था। इससे पहले मक्सी रोड से कलश यात्रा निकली थी। इसमें हजारों की संख्या में शहरवासी शामिल हुए थे।

उस वक्त की स्मृतियों को याद करते हुए शिवपुरी के 93 वर्षीय प्रेमनारायण नागर और कृष्णमंगलसिंह कुलश्रेष्ठ बताते हैं कि बापू के अस्थि कलश दर्शन मात्र को ही हजारों की संख्या में लोग जुट गए थे। वह पल आज भी याद आता है। उन्होंने कहा कि इसे विडंबना ही कहेंगे कि धर्मधानी उज्जैन में एक भी मार्ग महात्मा गांधी के नाम पर नहीं है। जबकि प्रदेश के अन्य दूसरे प्रमुख शहरों में गांधीजी के नाम पर नाम है।

महाकाल की नगरी में बापू पर शोध भी

महाकाल की नगरी में महात्मा गांधी पर शोध भी होते रहे हैं। विक्रम विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार बीते 10 साल में 1320 विद्यार्थियों ने शोध किए हैं। इनमें से सिर्फ 3 विद्यार्थियों ने गांधीजी के जीवन दर्शन और विचार पर शोध ग्रंथ लिखा है। इनके नाम आयशा सिद्घिकी, आरिफ हुसैन पठान और घनश्याम चौहान हैं।

सभी विश्वविद्यालयों में 150 दिन कार्यक्रम

विक्रम विश्वविद्यालय सहित प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में 150 दिन महात्मा गांधी के विचार और दर्शन पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम होंगे। राजभवन की ओर से सभी विश्विविद्यालयों को संगोष्ठी, चित्रकला, रैली, प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम 2 अक्टूबर 2018 से 2 अक्टूबर 2019 के बीच कराने को कैलेंडर जारी किया गया है।