देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम से

बुढ़ाती उम्मीदों का शिलाजीत न बन जाए सपाक्स पार्टी।

भोपाल। सत्ता की पंजीरी का मोह आदर्शों और सिद्धान्तों को लोलुपता में बदल देता है,उम्मीद का अतिरेक मूलभूत मानकों को भी बदल सकता है। सपाक्स पार्टी का गठन और इसके बाद के घटनाक्रम मध्यप्रदेश में “अर्ध केजरीवाल” के अवतरण का संकेत दे रहे है। सपाक्स पार्टी के अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी का पिछड़ो के लिए केंद्र के समान 27 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन करना पार्टी के दिशा भटकने की और इशारा करता है।
मध्यप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सपाक्स का इतिहास कर्मचारियों के संगठन का है। बाद में कतिपय रिटायर्ड अधिकारियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने इसे आरक्षण के खिलाफ खड़ा किया और इसे मोदी सरकार के द्वारा एसटी/एससी एक्ट में बदलाव के बाद जबरजस्त जनसमर्थन हासिल हुआ। लगे हाथ सपाक्स को करणी सेना का भी साथ मिल गया।
यही से बुढ़ाती आरजुओं के संग व्याकुल हो रहे रिटायर्ड अधिकारियों को अपने राजनीतिक सपने पूरे करने का प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो गया।
मोदी और शिवराज सरकार के स्वर्ण विरोधी फैसलों ने इसे हवा दी और स्पाक्स की आग प्रदेशव्यापी हो गई।
चुनाव सर पर आए तो कुर्सी दिखने लगी। सवर्णो का अंडरकरंट,पिछड़ा वर्ग का सहयोग और करणी सेना की ताकत ने एहसास करा दिया कि सत्ता में बिठा सकते है तो उखाड़ भी सकते है।
सपाक्स के संरक्षक पूर्व आईएएस हीरालाल त्रिवेदी सेवाकाल से ही राजनीति में आने का अवसर तलाश रहे थे। पहले भाजपा के दिग्गज रघुनंदन शर्मा की ऊँगली पकड़कर उज्जैन जिले के बड़नगर से चुनाव लड़ना चाहते थे,उनकी यह मंशा पूरी नही हुई तो इसी संपर्क में तत्कालीन नेता नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे का समर्थन हासिल कर सूचना आयुक्त बन गए।
इस पद पर रहकर उन्होंने प्रदेश भर में संपर्क बनाए और अपने नेतृव में सपाक्स को धार प्रदान की,उसका महत्व बढ़ाया,लोगों को जोड़ा,और धीरे-धीरे वे सपाक्स का चेहरा बन गए। उनको वरिष्ठ आईएएस राजीव शर्मा का रणनीतिक और वैचारिक आधार मिला तो सपाक्स यकायक प्रदेश में बड़ी ताकत बन गया।
यही से श्री त्रिवेदी को श्यामला हिल्स के सत्ता साकेत में जाने का ख़याल आने लगा।
फिर शुरू हुआ सपाक्स समाज मे शह और मात का खेल। भावनाओं के ज्वार में जुटा कार्यकर्ता खुद को ठगाया हुआ महसूस करने लगा। हीरालाल त्रिवेदी और उनके साथी रिटायर्ड अधिकारियों की मंडली ने वल्लभ भवन की तर्ज पर अपनी चलाना शुरू किया तो सपाक्स से लोग टूटने लगे। बहुप्रचारित भोपाल रैली भी इसी कार्यशैली की शिकार हो गई।
अब श्री त्रिवेदी ने पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण की वकालत कर सपाक्स के शुभचिंतकों को निराश ही किया है। सपाक्स की ताकत बनकर उभरे हीरालाल त्रिवेदी अब अपनी मनमानी कार्यशैली के कारण सपाक्स समाज को निराश कर रहे है।
जानकर कहते है कि प्रशासनिक अधिकारियों में सत्ता की पंजीरी खाने का प्रचलन सतही तौर पर तो प्रभावी लगता हैं, पर उनके अंदर बैठा मैकाले भाव उन्हें प्रजातंत्र के उपक्रम में असफल कर देता है।
बहरहाल आरक्षण और एसटीएससी एक्ट के कारण उपजी सवर्णो की नाराजी का चेहरा बनकर सामने आए सपाक्स से उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। यह सावधानी जरूर रखना चाहिए कि सपाक्स समाज बढ़ाती उम्मीदों के लिए सत्ता का शिलाजीत न बन जाए।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com