नई दिल्ली: उत्तर भारत के कई शहरों के लोगों के लिए धुंध यानी स्मॉग की वजह से आसमान नहीं दिखाई देना आम बात हो गई है. देश के इस हिस्से में अक्टूबर और नवंबर के महीने में खास तौर पर दीवाली के दौरान शहरों में सांस लेना मुश्किल हो जाता है. नासा ने इसी से जुड़ी ताज़ा तस्वीरें जारी की हैं जिनमें ये शहर जलते हुए दिखाई दे रहे हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद पराली जलाने की घटनाएं उत्तर भारत में तेज़ी से बढ़ रही हैं. नासा की एक्वा सेटेलाइट ने भारत के इस हिस्से में ऐसी आग की घटनाओं में 300 प्रतिशत बृद्धि दर्ज की है. ये वृद्धि 2003 से 2017 के बीच दर्ज की गई है.
नासा के सुदीप सरकार ने आग की घटनाओं पर ये रिपोर्ट बनाई है जिसमें 300 प्रतिशत वृद्धि की बात सामने आई है. उनका कहना है, “कागज़ी तौर पर ऐसी घटनाओं को रोकने की बात करना बेहद आसान है. लेकिन आपको याद रखना होगा कि ऐसा करने वाले बेहद छोटे स्तर के किसान हैं.” उपाए सुझाते हुए उन्होंने कहा कि अगर इन किसानों को कोई सस्ता और टिकाऊ उपाए नहीं दिया जाएगा तो ये ऐसा करना बंद नहीं करेंगे.
सरकार और उनके साथियों का कहना है कि वैसे तो आग और धुएं का असर सीधे तौर पर उत्तर भारत पर पड़ता है लेकिन आग से उड़ने वाले पदार्थ सैंकड़ों किलोमीटर दूर तक जाते हैं. उनका कहना है कि अगर उन्नत तकनीक का सहारा लिया जाए तो किसान पराली जलाना बंद कर सकते हैं. वहीं उन्होंने चेतावनी दी कि फिलहाल तो उत्तर भारत के लोगों को इससे बदतर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.
धरती की निगरानी में लगी सेटेलाइट ने इस साल अक्टूबर में पंजाब के आस-पास आग की कई घटनाओं को कैद किया. महीने के अंत तक हरियाणा और पंजाब में ऐसी और कई आग लगाने की घटनाएं सामने आईं. सुमोई एनपीपी सेटेलाइट पर लगे विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियो मीटर सूट (वीआईआईआरएस) ने 31 अक्टूबर को इसकी प्राकृतिक-रंग वाली तस्वीर कैद की. 30 अक्टूबर से एक नवंबर तक कैद की गई इन तस्वीरों में वीआईआईआरएस ने भारत के नक्शे में जहां जहां आग लगी है उसे हाईलाइट करके दिखाया है.
इस साल उत्तर भारत के कई शहरों में पराली जलाना हाल ही में शुरू हुआ है. पहले जब किसान फसलों की कटाई मज़दूरों से करवाते थे तो जो अपशिष्ट होता था उसे वापस खेतों में डाल दिया जाता था. 1980 के दौर में हार्वेस्टर से कटाई का चलन तेज़ हो गया. इसी के बाद से पराली जलाई जाने लगी क्योंकि कटाई की बाद की स्थिति ऐसी होती है कि इन्हें जलाए बिना जुताई संभव नहीं होती है. आग लगाने के साथ एक सहूलियत ये होती है कि खेत तुरंत गेहूं की अगली फसल के लिए तैयार हो जाते हैं.
दिल्ली में सांस लेना दूभर
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण की वजह से लोगों को सांस लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लोग एहतियातन मास्क लगाकर सड़कों पर निकल रहे हैं. इस बीच कल केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री डा . हर्षवर्धन ने दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण की गहराती समस्या से निपटने के लिये गुरूवार को बैठक बुलाई. जिसमें सभी संबंधित राज्यों के पर्यावरण मंत्री को आना था लेकिन दिल्ली के मंत्री इमरान हुसैन को छोड़कर कोई भी नहीं आए. सूत्रों के अनुसार, डा. हर्षवर्धन ने राज्यों के रवैये पर बैठक के दौरान नाराजगी जताई.
वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अन्य राज्यों के मंत्री बैठक में क्यों नहीं शामिल हुए? यह सभी राज्यों की समस्या है. मेरा अनुरोध है कि सभी साथ आएं. उसके बाद ही हम समस्या का निदान कर सकते हैं.
Why didn’t ministers from other states attend? Its a collective problem and I urge everyone to please work together. Only then can we find a soln. https://t.co/KSmR5deJDb
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) November 1, 2018
अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा जलाए जा रहे पराली को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने आज एक खबर के साथ ट्वीट कर कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के लिए पराली जिम्मेदार है.
Those politicians and media houses who are saying that there is no stubble burning this year may like to see these images. Please face facts. Only then will we be able to find solns. https://t.co/At95B4Q5wg
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) November 2, 2018
राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मंत्रियों के नहीं आने पर हर्षवर्धन ने दुख जताया. उन्होंने कहा है कि वह राज्य सरकारों से इस बारे में बात करेंगे. केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एनसीआर के पांच शहरों दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद में हवा की लगातार खराब हो रही गुणवत्ता के मद्देनजर संबद्ध राज्य सरकारों के साझा प्रयासों की समीक्षा के लिये गुरुवार को पयार्वरण मंत्रियों की बैठक बुलाई थी.
हर्षवर्धन ने बताया कि पांचों शहरों में वायु प्रदूषण संबंधी मानकों के पालन की निगरानी के लिये मंत्रालय द्वारा गठित 41 निगरानी दलों के गत 15 सितंबर से जारी अभियान की रिपोर्ट में किसी भी शहर का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा. इन शहरों में समस्या और उसके कारणों को दूर करने के उपायों और प्रदूषण मानकों के पालन की दर बेहद कम दर्ज की गयी.
दिल्ली में आज भी वायु की गुणवत्ता ‘लगभग गंभीर’ के स्तर पर है. उत्तर प्रदेश के नोएडा और हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम में भी वायु की गुणवत्ता ‘गंभीर’ स्तर पर है.
दिशा-निर्देश जारी
केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम एनबीसीसी (इंडिया) लिमिटेड ने देशभर में खासतौर पर राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गिरती गुणवत्ता के मद्देनजर निर्माण गतिविधियों के कारण होने वाले प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए.
एनबीसीसी ने साइट की गतिविधियों और धूल प्रदूषण के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जैसे मिट्टी, कंकड़, सीमेंट एवं अन्य निर्माण सामग्री को लाने-ले जाने के लिए बंद वाहनों पर तिरपाल की शीट से ढकना, सीमेंट, फ्लाई ऐश का परिवहन और संग्रहण बंद सिलोस में किया जाना, निर्माण सामग्री को काटने और पीसने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है, कार्यस्थल पर काम पूरा होने के बाद मलबा तुरंत हटाना, धूल को उड़ने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव.
सीपीसीबी नियमों के अनुसार, बेरिकेडिंग की जाती है, सभी कार्यस्थलों पर डीजल/पेट्रोल/सीएनजी वाहलों में प्रदूषण के स्तर पर निगरानी रखी जाती है. कंपनी ने अधिकारियों की एक टीम भी बनाई है जो सभी परियोजना स्थलों पर धूल कम करने के लिए सख्त नियमों का पालन करती है और सभी स्थलों पर निगरानी रखती है.
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मास्क लगाकर खेलते दिखे खिलाड़ी
खराब हवा की वजह से कल रणजी मैच में मास्क लगा कर खेलते हुए खिलाड़ियों को देखा गया. इससे पहले 2016 में प्रदूषण के कारण बंगाल और गुजरात के बीच फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में मैच रद्द कर दिया गया था. श्रीलंका के खिलाड़ियों को 2017 में इसी मैदान में भारत के खिलाफ टेस्ट मैच में मास्क में देखा गया था.