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सस्‍ते होते कच्चे तेल से सरकार को बड़ी राहत

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड यानी कच्चे तेल की कीमतें सीधे तौर पर भारत सरकार वित्तीय गणित को प्रभावित करती है। दो महीने पहले जब कच्चा तेल 88 डॉलर तक पहुंच गया था, तब चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे का तय लक्ष्य हासिल करना मुश्किल लगने लगा था।

मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में एक झटके में आई छह फीसद की गिरावट के बाद न सिर्फ 3.2 फीसद का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य काबू में दिख रहा है, बल्कि चालू खाता घाटा की स्थिति भी बेहतर होती दिख रही है। ब्रेंट क्रूड पिछले तीन अक्टूबर को 86 डॉलर प्रति बैरल था।

उसके बाद से इसकी कीमतों में लगातार गिरावट का रुख है। मंगलवार को इसकी कीमत में छह फीसद की गिरावट हुई, जो पिछले दो वर्षों के दौरान एक दिन में दर्ज की गई सबसे बड़ी गिरावट थी। हालांकि बुधवार को इसमें थोड़ी वृद्धि हुई और कीमत 63 डॉलर प्रति बैरल के करीब रही।

इस वृद्धि के बावजूद पिछले डेढ़ महीने में 23 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी राहत मिली है। वित्त मंत्रालय का मानना है कि कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर प्रति बैरल की कटौती होती है तो सालाना तेल आयात बिल में 6,200 करोड़ रुपये की कटौती करता है।

ऐसे में चालू वित्त वर्ष की बाकी अवधि में कच्चा तेल मौजूदा दर पर भी बना रहे, तो इससे तेल आयात बिल कम रहेगा। तेल आयात बिल का असर रुपये की कीमत और चालू खाता घाटा पर भी होता है। क्रूड महंगा होता है तो आयात पर ज्यादा डॉलर खर्च करना पड़ता है। डॉलर की मांग बढ़ने से रुपया कमजोर होता है।

पिछले छह कारोबारी दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार मजबूत हुआ है। मंगलवार को यह 21 पैसे मजबूत हुआ, जिसके पीछे सस्ते क्रूड का ही योगदान है। इसके अलावा चालू खाते में घाटा जब बढ़ता है तो इससे देश में महंगाई बढ़ती है।

हाल के दिनों में जब चालू खाता के घाटे में तेजी से बढ़ोतरी के आसार बने थे तब सरकार की तरफ से आयात पर अंकुश लगाने की कई कोशिशें की गई थीं। वित्त मंत्रालय अब जीडीपी के अनुपात में चालू खाते में घाटे को दो फीसद के स्तर पर रखने में सफल रह सकता है। क्रूड के सस्ता होने से सरकार पर पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कटौती करने का दबाव भी खत्म हो गया है।