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सिंगल महिलाओं को पासपोर्ट बनाने में संघर्ष करना पड़ रहा है।

 

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पासपोर्ट की प्रक्रिया भले ही सरल कर दी हो पर अकेली रह रही महिलाओं को पासपोर्ट बनवाना कठिन हो रहा है।
भारत का संविधान भले ही स्त्री-पुरुष को समानता का अधिकार देता हो लेकिन हकीकत में आज भी देश की नीतियाँ पुरुष प्रधान ही बनती है. सरकारी दस्तावेजों में इस मानसिकता की झलक साफ देखी जा सकती है. इसका एक उदाहरण भारतीय पासपोर्ट नियम है. एक महिला को पासपोर्ट बनाने के लिए कितने पापड बेलने पडते है इसका अन्दाजा बैंगलोर की रहने वाली सारिता नागर की कहानी से लगाया जा सकता है.
इंदौर में जन्मी, पली, बढी सरिता नागर अपना पासपोर्ट बनवाने के लिए पिछले कई दिनों से बैंगलोर स्थित पासपोर्ट ऑफिस के चक्कर काट रही है. उनका पासपोर्ट इसलिए नहीं बन पा रहा है क्योंकि उनका सरनेम विवाह के बाद बदल गया है. वे चाहती है कि उनका पासपोर्ट मूल दस्तावेजों के अनुसार ही बनाया जाए लेकिन पासपोर्ट अधिकारी तैयार नहीं. उनका कहना है कि पति के सरनेम पर ही उनका पासपोर्ट बनेगा. सरिता नागर इंदौर में जन्मी और स्नातक भी इंदौर से किया विवाह बैंगलोर में हुआ पासपोर्ट बनवाने के लिये इन्हें बैगलोर के 2 अखबारों जिसमें अंग्रेजी और लोकल अखबार में विज्ञापन देना है तब यह अपने आप को सरिता नागर है सत्यापित कर पाएंगी तब ये पासपोर्ट पा पाएंगी।

दूसरा उदाहरण सिंगल मदर प्रीति का है. उनका कहना है कि उन्होनें शादी नहीं की है लेकिन एक बेटी को गोद लिया है. स्कूली शिक्षा तक उन्हें कोई परेशानी नही आई किन्तु जब पासपोर्ट बनाने की बात आई तब उन्हें मालूम चला कि सिंगल मदर होने का दुखद अनुभव क्या है. कानून माँ को अभिभावक तो मानता है लेकिन उसके सरनेम पर पासपोर्ट नहीं बनाता. पिता का सरनेम चाहिए?

पासपोर्ट भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला एक दस्तावेज। जिस को पाकर अपनी पहचान को आप कही भी प्रस्तुत कर सकते है।
प्रीति का विवाह न करने का अपना निर्णय था किंतु  जब प्रीति ने परिणीति को कानूनी प्रक्रिया अपना कर गोद लिया।स्कूली शिक्षा तक कोई परेशानी नही आई किन्तु जब पासपोर्ट बनाने की बात आई तब उन्हें इतने कड़वे घूट मिले तब सबसे ज्यादा सिंगल मदर होने का दुखद अनुभव मिला।
10 वर्ष पहले पापा ने पासपोर्ट बनवाया था उसमें करेक्शन करवाना इतना कठिन है जैसे हथेली पर सरसों उगाना।यह कहना है मुस्कान का।
यह सारे अनुभव महिलाओं के ही है क्या भारत सरकार जो समय समय पर पासपोर्ट नियम और प्रक्रिया को लेकर घोषणा करती रहती है वह कितनी सही हैं इसकी पड़ताल की जाये तो सबसे पहले यह बात सामने आती है कि महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव अपने ही देश मे अपनी ही सरकार द्वारा किया जा रहा है विशेष कर पासपोर्ट विभाग में।
अगर विवाहित है तो कई सारे दस्तावेज प्रस्तुत कर अपने आप को साबित करो । 10 वी की अंकसूची जन्मदिनांक को साबित कर सकती है पर नाम  परिचय के लिए अखबार की जाहिर सूचना ही जरूरी है।
अगर क़ानूनन तलाकशुदा दस्तावेज पेश भी कर दे तब भी पूर्व पति का नाम वाला ही पासपोर्ट चलाना होगा।
कुमारी से श्रीमती कराना भी आसान नही है।
सारी समस्याएं लड़कियों और महिलाओं से ही जुड़ी हुई है।शायद आप कभी भी पासपोर्ट कार्यालय जाए तो महिलाओं के कारण ही पति पिता या भाई को परेशान होते देख सकते है।
तो क्या अब भी महिलाओं को दूसरे नम्बर पर माना जाता रहेगा इस आधुनिक समाज और आधुनिक कानून व्यवस्था में।
पासपोर्ट बन तो जाते ही है पर लचर प्रक्रिया और भेदभाव वाली कठिन प्रश्नावली परेशान करती है, जैसे किसी गलत या पेशेवर क्रिमिनल के साथ एतिहात बरती जाती है ।
सारिता और प्रीति तो सिर्फ बानगी है इन पुरुष प्रधान नियमों की. ऐसी हजारों महिलाए है जो अपने सरनेम पर सरकारी दस्तावेज बनवाना चाहती है लेकिन जिल्लत और अपमान उनके हौसले को तोड जाते है.