बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता मनोज बाजपेयी और इमरान हाशमी ने भी वेब सीरीज के समंदर में डुबकी लगा दी है। मनोज बाजपेयी जहां ‘द फैमिली मैन’ के साथ आए हैं तो वहीं इमरान हाशमी ‘बार्ड ऑफ ब्लड’ के साथ इस मैदान में उतरे हैं। हालांकि दोनों के किरदार करीबन एक जैसे ही हैं। दोनों ही अपनी अपनी वेब सीरीज में स्पाई के किरदार में नजर आ रहे हैं। लेकिन दोनों ही वेब सीरीज के प्लॉट एक दम अलग हैं और शायद यही बात वेब सीरीज को फिल्मों से अधिक खास बनाती है। दरअसल यहां पर एक थीम को भी अनेकों तरह से दिखाया जा रहा है। लेकिन क्या वेब सीरीज को हिट कराने के लिए इतना काफी है? डिफरेंट कॉन्सेप्ट्स के साथ ही साथ ऐसी कई और बातें हैं जिनके चलते वेब सीरीज सफलता के कदम चूम रही हैं। इस स्पेशल रिपोर्ट में हम वेब सीरीज से ही जुड़े कई मुद्दों पर बात करेंगे। जिसमें वेब सीरीज की शुरुआत से लेकर रेवन्यू तक की बात करेंगे।
वेब सीरीज की शुरुआत
देश में वेब सीरीज का इतिहास काफी पुराना नहीं है। मोटे तौर पर कहा जाए तो करीब 8-10 साल पहले ही वेब सीरीज की शुरुआत मानी जा सकती है। लेकिन कहा जा सकता है कि 2014 से वेब सीरीज ट्रेंड में आया और दर्शकों का प्यार मिलना शुरू हुआ। 2014 में रिलीज हुई वेब सीरीज परमानेंट रूममेट्स को दर्शकों ने काफी पसंद किया। इस वेब सीरीज में सुमित व्यास के साथ निधि सिंह नजर आईं थी। दोनों की मजेदार केमिस्ट्री को दर्शकों ने जमकर एन्जॉय किया था। वहीं इसके बाद बेक्ड, टीवीएफ पिचर्स, मैन्स वर्ल्ड, बैंग बाजा बारात, आएशा, चाइनीज भसड़, टीवीएफ बैचेलर्स, टीवीएफ ट्रिपलिंग, ऑफिशियल चुकियागिरी, सेक्रेड गेम्स, मिर्जापुर और होस्टेज जैसी वेब सीरीज ने धूम मचा दी। वहीं फिलहाल द फैमिली मैन और द बार्ड ऑफ ब्लड सुर्खियों में हैं।
आखिर क्यों हिट हैं वेब सीरीज
आज बॉलीवुड सहित पूरे सिनेमा को वेब सीरीज टक्कर देती नजर आ रही हैं। लेकिन आखिर क्या वजह है इसकी? चलिए सबसे पहले बात करते हैं वेब सीरीज के सिक्के के पहले पहलू की, बॉलीवुड फिल्म करीबन हर शुक्रवार को रिलीज होती है। कभी एक और कभी एक से ज्यादा फिल्में सिनेमाघर में दस्तक देती हैं। फिल्म की औसत लंबाई 2-3 घंटे की होती है, जिसको देखने के लिए आपको लेना होता है टिकट, या फिर कह सकते हैं- महंगा टिकट। सिनेमाघर में फिल्मों के टिकट की कीमत 200 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक होती है। और हां इसके साथ ही में थिएटर तक आने-जाने का वक्त और खाने पीने का खर्चा मत भूलिएगा। यानी कुल मिलाकर एक फिल्म आपको करीब एक हजार रुपये की पड़ती है। अब जरा सिक्के के पहलू को बदलते हैं और बात करते हैं दूसरे पहलू की। आप शाम को थके हारे ऑफिस से घर के लिए निकलते हैं। मेट्रो में बैठते हैं, फोन बाहर निकलाते हैं और शुरू कर देते हैं आपकी पसंदीदा वेब सीरीज को देखना।
चूंकि आपका मोबाइल ही आपका थिएटर है। आपको कहीं आने जाने की जरूरत नहीं है। दरअसल मोबाइल पर कुछ भी देखना बेहद आसान है, आप बिस्तर पर लेटे हुए, कैब में किसी मीटिंग के लिए जाते हुए या फिर जिम में साइकिलिंग करते हुए भी वेब सीरीज देख सकते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि आपको वेब सीरीज देखने के लिए कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। जहां कुछ एप्स इसके लिए कोई पैसा नहीं लेते हैं तो वहीं कुछ एप्स के लिए आपको सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता है। लेकिन इस सब्सक्रिप्शन की फीस आपके थिएटर के खर्चे से कम ही होती है। थिएटर में जहां आप 500- 1000 रुपये में सिर्फ एक फिल्म देख पाते हैं तो वहीं दूसरी ओर सब्सक्रिप्शन में आपको एक सीमित वक्त के लिए सब कुछ मिल जाता है। यानी सिर्फ एक बार पैसा खर्च करना होता है और कुछ दिन या महीने आप कितनी भी वेब सीरीज देख सकते हैं। खैर बात सिर्फ वेब सीरीज तक ही नहीं रुकती हैं, क्योंकि अब इन एप्स में आपको कई सारी बॉलीवुड फिल्में देखने का भी मौका मिल जाता है। जो कुछ वक्त पहले ही थिएटर से हटी हैं। तो डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ते ट्रेंड पर हम कह सकते हैं – रुपया एक, फायदा अनेक।
सेंसर की कैंची नहीं
वैसे वेब सीरीज के बढ़ते क्रेज की वजह सिर्फ पैसे और वक्त की बचत ही नहीं है। इसके साथ ही एक और बड़ी वजह है सेंसर बोर्ड की कैंची का न होना। दरअसल वेब सीरीज में अभी तक कांट छांट के लिए सेंसर बोर्ड की कोई कैंची नहीं है। इसलिए इसमें कंटेंट फिल्टर नहीं होता है। यानी सीधा सपाट जो बनता है वो ही दर्शकों तक पहुंचता है। ऐसे में गालियों और बोल्ड सीन्स की भरमार भी वेब सीरीज में देखने को मिलती है। वेब सीरीज में आमतौर पर उस भाषा का इस्तेमाल देखने को मिलता है जो आपके और हमारे जैसे कई लोग करते हैं।
आम तौर पर गुस्से और कई दफा मस्ती में अपने दोस्तों को गाली दी जाती है जो वेब सीरीज में भी देखने को मिलता है। तो क्या यह भी कह सकते हैं कि वेब सीरीज का यूजर खुद को उसके कंटेंट से कनेक्ट कर पाता है जिसके चलते वेब सीरीज आम दर्शकों के बीच हिट साबित हो रही है।भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान पुणे के अध्यक्ष बी पी सिंह ने कहा था कि ऐसा नहीं है ओटीटी पर कुछ भी दिखाने का लाइसेंस मिल गया है। यह सिर्फ दर्शकों पर निर्भर करेगा कि वह क्या देखना पसंद करते हैं। जहां तक बात क्रिएटिविटी की है तो भीड़ से अलग होने के लिए अश्लीलता और गालियों की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ गालियों से ही ओटीटी कंटेंट नहीं बनता। इसने हमें बोल्ड विषयों को लेने की स्वतंत्रता दी है लेकिन इसकी लिखावट भी वैसी ही होनी चाहिए। अगर ऐ ओटीटी के लिए भी नियम बने तो लेखन शैली और बदलनी चाहिए।