देशहोम

भारतीय समाज मिटा नहीं क्योंकि आध्यात्मिक ऊर्जा से चैतन्य है – दीपक विस्पुते

उज्जैन। डॉ हेडगेवार स्मृति व्याख्यानमाला की प्रथम संध्या पर भारतीय समाज की स्थापना, उसके क्रमिक विकास और भविष्य की संभावनाओं पर विचार रखा गया। विश्व की अनेक सभ्यताओं के पतन के बीच भारत के सभ्यता गिर-गिर कर भी संभालती रही तो उसके पीछे आध्यात्मिक ऊर्जा कारण है।

यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख दीपक विस्पुते ने लोटि स्कूल परिसर के मुक्ताकाशी मंच पर आयोजित व्याख्यानमाला की प्रथम संध्या पर समाज परिवर्तन की संकल्पना एवं हमारी भूमिका विषय पर बोलते हुए कही। आपने कहा मुझे समाज निर्माण की बात चलती है सबसे पहले ध्यान में आता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की। हम सब आरण्यक संस्कृति के लोग हैं, वनों में रहते थे । शिकार करते थे, मांस खाते थे। धीरे-धीरे हमने खेती करना सीखा और जब अन्न उपजा तो उसकी सुरक्षा के लिए खानाबदोश जीवन छोड़कर एक जगह रहने लगे । इससे ग्राम बने, ग्राम संस्कृति से नागर सभ्यता का विकास हुआ और वहां हमने सुंदर अल्पना और रंगोली बनाना सीखा। आज भी गुफाओं में भित्ति चित्र , शैल चित्र मिलेंगे जिसमें गरुड़, शंख , नाग , पद्म यह सब बने मिलेंगे । इस तरह सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति यदि विश्व में है तो हमारी भारत की है। जब सभ्यताएं बनीं तो उनका उत्थान हुआ । जब उत्थान हुआ तो पतन भी हुआ। जो जितनी पुरानी सभ्यता है उसने सबसे ज्यादा उत्थान और पतन देखे हैं। अब तक मिस्र , बेबीलॉन, यूनान, रोमन अनेक सभ्यताएं बनीं और खत्म हो गईं। लेकिन आखिरकार इकबाल को कहना पड़ा कि हिंदुस्तान की बात कुछ अलग है, हस्ती मिटती नहीं हमारी। एक आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण हम आज तक बने रहे। हर पतन के कारण हमारा पुनरुत्थान हुआ। यह अपार आध्यात्मिक ऊर्जा का ही प्रतिफल है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सिंधु जागृत समाज के संरक्षक दौलत खेमचंदानी ने की , संचालन वरुण गुप्ता ने किया । अतिथि परिचय आनंद दशोरा ने किया। समिति अध्यक्ष नितिन गरुड़, सचिव गोपाल गुप्ता, डॉ क्षमाशील मिश्रा, पंकज चांदोरकर ने अतिथि स्वागत किया।