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आर्यन खान के खिलाफ रची गई बड़ी साजिश? अब शिकारी खुद हो गया शिकार

क्या आर्यन खान बिना किसी जुर्म के 25 दिनों तक जेल में रहा? क्या आर्यन खान एनसीबी और उसके ज़ोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े की साज़िश का शिकार हुआ? क्या एनसीबी ने आर्यन के व्हाट्सअप चैट का झूठा ढिंढोरा पीटा था?

सिंघम टाइप एंट्री हो, बड़े बड़े कैमरे हर कदम का पीछा कर रहे हों, पत्रकारों की बेचैन निगाहें ज़ुबान से लफ्ज़ फूटने के इंतज़ार में हो, टीवी पर बस उसी का चेहरा हो, अगले रोज़ अखबारों में उसकी बड़ी बड़ी तस्वीरें हों, और एक सरकारी अफसर को क्या चाहिए. खोने के लिए क्या है? कुछ भी नहीं. चाल उलटी पड़ जाए, तो ईमानदारी का चोला, फंसाने की साज़िश, पड़ोसी मुल्क का षडयंत्र. और पाने के लिए, पाने के लिए सारी दुनिया, सिंघम का लेबल, प्रमोशन पर प्रमोशन, बड़े बड़े लोगों में खौफ, नेताओं से यारी. लेकिन… कभी कभी ये सब भी भारी पड़ जाता है.

जब वो सिंघम बना तो उसका एक एक-एक अंदाज़ खबरों में सुर्खियां बन गया. लोग उसकी ईमानदारी की कसमें खानें लगे. मगर जब फर्ज़, देशभक्ति और ईमानदारी की पिच पर उछाले गए सिक्के को पलटकर उसका दूसरा पहलू देखा गया. तो वो सिंघम धोखेबाज़ नज़र आने लगा. हालांकि पत्रकारों ने अभी भी उसका पीछा किया. अब टीवी पर उसके मुंह से निकले लफ्ज़ नहीं बल्कि उसके बारे में हर रोज़ हो रहे खुलासे छा गए. उसकी पैदाइश से लेकर उसके फर्ज़ तक के फर्ज़ीवाड़े की खबरें हडलाइंस बनने लगीं और लोग उसे बेईमान करार देने लगे. हम बात कर रहे हैं मुंबई में एनसीबी के जोनल डॉयरेक्टर समीर वानखेड़े की.

वक्त का पहिया ऐसे ही घूमता है. कभी नीचे कभी ऊपर. तभी तो सन 1974 में आनंद बख्शी साहब ने कहा था, यार हमारी बात सुनो, ऐसा इक इंसान चुनो. जिसने पाप ना किया हो, जो पापी ना हो.

सुलगते सवाल

क्या आर्यन खान बिना किसी जुर्म के 25 दिनों तक जेल में रहा? क्या आर्यन खान एनसीबी और उसके ज़ोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े की साज़िश का शिकार हुआ? क्या एनसीबी ने आर्यन के व्हाट्सअप चैट का झूठा ढिंढोरा पीटा था? क्या क्रूज़ पर एनसीबी की पूरी रेड ही झूठ की बुनियाद पर मारी गई थी? इन सारे सुलगते सवालों को बॉम्बे हाईकोर्ट के कुछ जवाबों ने जन्म दिया है. जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा, उसकी कुछ लाइनें देखिए.

जस्टिस नितिन सांब्री ने कहा कि “एप्लीकेंट नंबर 1 और 2 यानी आर्यन खान और अरबाज़ खान क्रूज़ पर एक साथ सफर कर रहे थे, जबकि एप्लीकेंट नंबर 3 मुनमुन धमेचा अकेली. मुनमुन या बाकी किसी के साथ आर्यन और अरबाज़ का कोई लिंक नहीं था. आर्यन के आईफोन से मिले व्हाट्सअप चैट में भी ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था, जिससे ये साबित होता कि क्रूज़ पर ड्रग्स को लेकर कोई साज़िश रची गई थी. इस कोर्ट में रिकॉर्ड पर ऐसा एक भी सबूत नहीं पेश किया गया, जिससे ये साबित हो सके कि क्रूज़ पर सवार सभी आरोपी एक ही मकसद से इकट्ठा हुए थे.

एनसीबी के कोरे दावे

बॉम्बे हाईकोर्ट का ये बयान बेहद अहम है, अहम इसलिए कि इस बयान से ये साबित होता है कि क्रूज़ पर 2 अक्टूबर को ना तो कोई रेव पार्टी थी, ना आर्यन खान और उसका दोस्त अरबाज़ उस रेव पार्टी का हिस्सा और ना ही किसी बड़ी साज़िश के हिस्सेदार. इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने अपने फैसले में एनसीबी पर जो सबसे बड़ा सवाल उठाया वो उस व्हाट्सअप चैट को लेकर था जिस व्हाट्सअप चैट के बलबूते पर एनसीबी आर्यन को इंटरनेशनल ड्रग डीलर साबित करने पर तुली थी.

आपको याद होगा कि 3 अक्टूबर को एनसीबी ने जब पहली बार आर्यन को अदालत में पेश किया था, एनसीबी ने हिरासत मांगते वक्त उस रोज़ किसी व्हाट्सअप चैट का ज़िक्र नहीं किया था. जबकि आर्यन करीब 20 घंटे से एनसीबी की हिरासत में था और उसका आईफोन भी. पहले दिन एनसीबी की दलील बेहद कमज़ोर थी, लिहाज़ा अदालत ने भी आर्यन को एक दिन के लिए ही हिरासत में भेजा, लेकिन एक दिन बाद जब दोबारा आर्यन को कोर्ट में पेश किया गया, तब पहली बार एनसीबी ने आर्यन के व्हाट्सअप चैट का खुलासा किया.

और एनसीबी ने दावा किया कि इस चैट से ये साबित होता है कि आर्यन के तार कुछ विदेशी ड्रग डीलरों से जुड़े हैं. इसी के बाद तब अदालत ने आर्यन को 3 दिन की हिरासत में भेज दिया था. उसके बाद से ही एनसीबी अलग-अलग कोर्ट के अंदर और कोर्ट के बाहर ये दावा करती रही कि व्हाट्सअप चैट की शक्ल में आर्यन को लंबे वक्त के लिए जेल भेजने के पुख्ता सबूत हैं.

हाई कोर्ट ने पहली नजर में किया खारिज

लेकिन जिसे एनसीबी अपना सबसे बड़ा हथियार मान रही थी, उसी व्हाट्सअप चैट को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहली ही नज़र में पूरी तरह से खारिज कर दिया. अदालत ने आर्यन, अरबाज़ और मुनमुन को ज़मानत देते हुए अपने फैसले में साफ-साफ कहा कि आर्यन के मोबाइल के व्हाट्सअप चैट से एक भी ऐसी आपत्तिजनक चीज़ नहीं मिली, जो किसी साज़िश या जुर्म की तरफ इशारा करती हो.

हाईकोर्ट के जस्टिस नितिन साम्ब्रे का तफसील में सुनाया गया बेल ऑर्डर 14 पन्नों का है. जिसमें एनसीबी के उस ईमानदार अफसर और उसके किए गए ऑपरेशन के बारे में जस्टिस नितिन साम्ब्रे ने एक दो नहीं 17 पहलुओं के साथ अपनी राय रखी है. जिसका लब्बोलोआब हाईकोर्ट की ज़ुबान में कुछ यूं है.

– क्रूज ड्रग्स मामले में 26 दिनों तक जेल की सलाखों के पीछे रहने वाले आर्यन खान को आरोपी साबित करने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के पास कोई सुबूत ही नहीं है.

– कोर्ट के सामने ये साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सुबूत नहीं है कि सभी आरोपी एक ही इरादे से क्रूज पर सवार हुए थे.

-सुबूत के तौर पर बुनियादी सामग्री होनी चाहिए, जिससे आवेदकों के खिलाफ पुख्ता साजिश के मामले को साबित किया जा सके.

-सिर्फ इसलिए कि आर्यन और उनके दोस्त अरबाज मर्चेंट, मुनमुन धमेचा एक ही क्रूज पर थे, ये अपने आप में उनके खिलाफ साजिश के आरोप का आधार नहीं हो सकता है.

– सभी आरोपियों  के इकबालिया बयानों पर सिर्फ जांच के लिए गौर किया जा सकता है, लेकिन आरोप साबित करने के लिए नहीं, क्योंकि ये मजबूर नहीं है.

– आर्यन खान के पास से कोई भी ड्रग्स नहीं मिला है और इस तथ्य पर कोई विवाद भी नहीं है.

– मर्चेंट और धमेचा के पास से अवैध मादक पदार्थ पाया गया, जिसकी मात्रा बेहद कम थी.

– आर्यन या तीनों आरोपियों की व्हाट्सएप चैट में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था या एनडीपीएस अधिनियम के तहत साजिश रचने और अपराध करने के लिए बैठक करने का भी कोई सबूत नहीं था.

– ऐसे मामलों में पहले ये सुनिश्चित करने की जरूरत है कि क्या इस बात के पर्याप्त सुबूत हैं कि वो प्रथम दृष्टया ये तय कर सके कि आवेदकों ने साजिश रची थी या नहीं.

कौन सच्चा, कौन झूठा, कौन नेक, कौन पापी. हमारे समाज में इसका फैसला अदालतें करती हैं, कभी कभी ये फैसले काग़ज़ पर भी छोड़ दिए जाते हैं. हमारे मुल्क में कागज़ बहुत अहम है. कागज़ तो दिखाना पड़ता है, बात तभी मानी जाती है. और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक पिछले डेढ़ महीने से कागज़ पर कागज़ पेश कर के ईमानदारों की ईमानदारी और उन्हें आईना दिखाने की कोशिश में लगे हैं. जिसके बाद अदालतें भी उन कागज़ों की तस्दीक और उन ईमानदारों पर सवाल करने लगी हैं.