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भारत की पाकिस्‍तान पर ऐतिहासिक जीत, जिसने रखी बांग्‍लादेश की नींव

पाकिस्तानी सेना में तत्कालीन मेजर-जनरल, अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी की संयुक्त सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. 03 दिसंबर को युद्द का ऐलान हुआ और 13 दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्‍तान को घुटनों पर ला दिया.

Vijay Diwas 2021

बात साल 1971 की है. जब भारत और पाकिस्‍तान के बीच जंग छिड़ी थी. 03 दिसंबर को युद्द का ऐलान हुआ और 13 दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्‍तान को घुटनों पर ला दिया. इस ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है. यह जीत इसलिए ऐतिहासिक है, क्‍योंकि इसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ. विजय दिवस 2021 पाकिस्तान पर भारत की जीत की 50वीं वर्षगांठ का जश्न है.

विजय दिवस का इतिहास

पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, 03 दिसंबर 1971 को युद्ध शुरू हुआ और 13 दिन बाद 16 दिसंबर को बिना शर्त पाकिस्‍तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ खत्‍म हो गया. इस दिन, पाकिस्तानी सेना में तत्कालीन मेजर-जनरल, अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी की संयुक्त सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. नियाज़ी, जिन्होंने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया, पाकिस्तान पूर्वी कमान के कमांडर थे, और उन्होंने ढाका (अब बांग्लादेश की राजधानी ढाका) में रमना रेस कोर्स में समर्पण के दस्‍तावेजों पर भी हस्ताक्षर किए थे.

भारत के पूर्वी कमान के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा समर्पण के दस्‍तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए और स्वीकार किए गए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यह अब तक का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण भी था और नियाज़ी की समर्पण पर हस्ताक्षर करने वाली प्रतिष्ठित तस्वीर शक्तिशाली भारतीय सेना की बहादुरी की कहानी कहती है. इस युद्ध में, पाकिस्तान को सबसे अधिक नुकसान हुआ. सेना ने लगभग 8,000 सिपाही खोए और 25,000 घायल हुए, जबकि भारत के 3000 सैनिक शहीद और कई हजार घायल हो गए.

विजय दिवस का इतिहास:

पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, 03 दिसंबर 1971 को युद्ध शुरू हुआ और 13 दिन बाद 16 दिसंबर को बिना शर्त पाकिस्‍तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ खत्‍म हो गया. इस दिन, पाकिस्तानी सेना में तत्कालीन मेजर-जनरल, अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी की संयुक्त सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. नियाज़ी, जिन्होंने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया, पाकिस्तान पूर्वी कमान के कमांडर थे, और उन्होंने ढाका (अब बांग्लादेश की राजधानी ढाका) में रमना रेस कोर्स में समर्पण के दस्‍तावेजों पर भी हस्ताक्षर किए थे.

भारत के पूर्वी कमान के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा समर्पण के दस्‍तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए और स्वीकार किए गए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यह अब तक का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण भी था और नियाज़ी की समर्पण पर हस्ताक्षर करने वाली प्रतिष्ठित तस्वीर शक्तिशाली भारतीय सेना की बहादुरी की कहानी कहती है. इस युद्ध में, पाकिस्तान को सबसे अधिक नुकसान हुआ. सेना ने लगभग 8,000 सिपाही खोए और 25,000 घायल हुए, जबकि भारत के 3000 सैनिक शहीद और कई हजार घायल हो गए.

बांग्‍लादेश का निर्माण: 

1971 के युद्ध ने बांग्लादेश को दुनिया के नक्शे पर ला खड़ा किया. इससे पहले तक यह पूर्वी पाकिस्तान था. बांग्लादेश पाकिस्तान से देश की औपचारिक स्वतंत्रता को चिह्नित करने के लिए दिन को ‘Bijoy Bidos’  के रूप में मनाता है.  इस दिन, भारत के रक्षा मंत्री और भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों अंगों के प्रमुख नई दिल्ली में इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं.