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अटल बिहारी वाजपेयी जब अपनी हार पर भी खूब हंसे, बताया था फायदा; पुण्यतिथि पर पीएम ने दी श्रद्धांजलि

साल 2018 में आज ही के दिन दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। ‘सदैव अटल’ पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का स्मारक है।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दिल्ली स्थित ‘सदैव अटैल’ जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इनके अलावा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे पी नड्डा, राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने भी भारत रत्न वाजपेयी को पुष्पांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर प्रार्थना सभा का भी आयोजन किया गया। मालूम हो कि ‘सदैव अटल” वाजपेयी का स्मारक है। साल 2018 में आज ही के दिन दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। वाजपेयी को 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

हार पर वाजपेयी के हंसने का किस्सा
पूर्व पीएम अटल जी के जीवन से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं। ऐसा ही एक किस्सा उस वक्त का है जब वह अपनी हार पर हंसने लगे थे। जी हां, बात 1984 की है। इस साल लोकसभा चुनाव में ग्वालियर सीट से भाजपा के टिकट पर वाजपेयी खड़े हुए थे। कांग्रेस उम्मीदवार माधवराव सिंधिया से उनका मुकाबला था। अटल जी यह लड़ाई हार गए। हारने के बाद वह दुखी नहीं हुए बल्कि खूब हंसे थे।

‘मां-बेटे की बगावत को सड़क पर आने से रोका’ 
अटल जी से इस हंसी का कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया, ‘मेरी हार का मुझे गम नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने मां-बेटे की बगावत को सड़क पर आने से रोक दिया। अगर मैं ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ा तो माधवराव सिंधिया के खिलाफ राजमाता चुनाव लड़तीं। मैं नहीं चाहता था कि ऐसा हो।’

अटल जी को धर्मपुत्र मानती थीं राजमाता
2005 में अटल जी ने ग्वालियर की हार का दोबारा जिक्र किया था। उन्होंने साहित्य सभा में कहा था कि ग्वालियर में मेरी हार के पीछे इतिहास छिपा हुआ है, जो मेरे साथ ही चला जाएगा। दरअसल, ग्वालियर के सिंधिया घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के समय से साथ रहे। विजयाराजे सिंधिया अटलजी को अपना धर्मपुत्र मानती थीं। वाजपेयी ने इसी बात का जिक्र करते हुए कहा था कि वो मां-बेटे में लड़ाई नहीं चाहते थे।