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पूजा स्थल अधिनियम-1991 लागू रहेगा या होगा खत्म, सुप्रीम कोर्ट में आज इस मामले पर होगी सुनवाई

पिछले साल 14 नवंबर को केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जाएगा, जिनमें मामले के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई कर सकता है, जिनमें धार्मिक स्थलों पर दावा पेश करने पर रोक संबंधी 1991 के अधिनियम को चुनौती दी गई है। संबंधित कानून के अनुसार, धार्मिक स्थलों के 15 अगस्त 1947 के स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दाखिल नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी सहित छह याचिकाओं को सोमवार को सुनवाई के लिए लिस्टेड किया है, जिनमें इस कानून के प्रावधानों को चुनौती दी गई है।

पिछले साल 14 नवंबर को केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जाएगा, जिनमें मामले के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने SC से और समय देने की गुजारिश की थी ताकि सरकार के विभिन्न स्तरों पर इस मुद्दे पर चर्चा की जा सके। पिछली सुनवाई में पीठ ने कहा था, ‘अनुरोध के आधार पर हम 12 दिसंबर तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं। जवाबी हलफनामे की प्रति मामले के सभी वादियों को दी जाए। मामले की सुनवाई 9 जनवरी 2023 को सूचीबद्ध की जाए।’

अदालत ने पिछली सुनवाई में क्या कहा?
एससी मामले से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें एक याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की है, जिन्होंने पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की धारा- दो, तीन और चार को रद्द करने की अपली की है। उन्होंने तर्क दिया है कि यह किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह को पूजा स्थल पर दावा करने और न्यायिक प्रक्रिया अपनाने से रोकता है। अदालत ने 9 सितंबर को सुनवाई के दौरान कहा था कि याचिका में वर्ष 1991 के कानून के कई प्रावधानों को चुनौती दी गई है और इसे न्यायिक समीक्षा के लिए 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंपा जा सकता है। अदालत ने इसके साथ ही केंद्र से जवाब देने को कहा था।

सुब्रमण्यम स्वामी ने कई प्रावधानों को रद्द करने की रखी मांग 
भाजपा नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने कई प्रावधानों को रद्द करने की मांग की है ताकि हिंदू वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और मथुरा में दावा कर सकें। वहीं उपाध्याय ने दावा किया है कि ये प्रावधान अंसवैधानिक हैं, इसलिए इन्हें रद्द किया जाना चाहिए। दूसरी ओर जमीयत उलेमा ए हिंद का पक्ष रख रहे अधिवक्ता एजाज मकबूल ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए फैसले का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि उसमें वर्ष 1991 के कानून का संदर्भ दिया गया है और उसे रद्द नहीं किया जा सकता।