कालिदास, विक्रम की नगरी
उज्जयिनी को बारम्बार प्रणाम !
(1)
बहती जिसके अंतर-तम में
शिप्रा की मधुधारा पावन ,
आटो प्रहर सजग रहता दृढ़
अविजित महाकाल का शासन ,
जहाँ शून्य भी अनुभव करता
प्रतिपल मेघदूत की सिहरन ,
जो धरती पर उतरी स्वर्गिक
वैभवशाली नव अलका बन,
इसके कण-कण में सम्मोहन
जिसके रवि, शशि, तारक सकल ललाम !
कालिदास, विक्रम की नगरी
उज्जयिनी को बारम्बार प्रणाम !
(2)
कृष्ण-सुदामा का स्नेह-अंचल
जिसके जन-मानस पर छाया ,
कल लिए वासवदत्ता की
प्रति रमणी की सुगठित काया ,
पीर मछन्दर , योगी भर्तृहरि
का फैला गुरु जीवन- चिंतन ,
दुर्लभ जिसकी काली उजली,
शीतल सुख रातो का बंधन ,
शांत, सत्य, शिव, सुन्दर जीवन
अक्षय नैसर्गिक शोभा अभिराम !
कालिदास, विक्रम की नगरी
उज्जयिनी को बारम्बार प्रणाम !
– महेंद्र भटनागर