प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

*अफसरों का मेला,फिर भी है झमेला *

रोज एक नई आमद रोज वक नई जिम्मेदारी। मेला प्रशासन में अफसरों की जमात अब अखाड़ो के श्री महंतो से ज्यादा हो गयी है। अब सवाल सिर्फ क़ाबलियत का है अनुभव और प्रशासनिक समझ का है। काम में तेरह लगे है पर काम सिर्फ तीन करते है बाकी या तो पिछलग्गू बनकर घूमते है या मोबाइल में टाइम पास कर रहे है। पहली बार मेला प्रशासन में प्रशासनिक पदानुक्रम उल्टा चल रहा है। अतरिक्त सयुक्त और डिप्टी सब राजधानी के समाजवादी रवैये का शिकार हो गए है।
कोन किसके अधीन है कोन कमान संभाल रहा है जानना शोध का विषय है। मजा यह है कि किसी अफसर को काम मिलता है और वो तैनाती की जगह जाने के लिए निकलता है रास्ता कटने तक या तो उसकी तैनाती बदल जाती है या उसपर सीनियर जूनियर की परवाह किए बगैर एक और तैनाती हो जाती है।
ताजा मामला राजधानी से आए एक युवराज टाइप डिप्टी का है। उनसे सीनियर कई है बेचारे अरसे से मेला प्रशासन में है परंतु युवराज के लिए नई इबारत लिखी गई है। उन्हें आनन् फानन में मेला अधिकारी का उत्तराधिकारी बना दिया गया है। सब के सब अफसर सन्न रह गए है। आवाज युवराज की पहुँच में दब गयी है।ऐसा नहीं है की काम नहीं हो रहा है। सुविधा सब ले रहे है। काम करने बाले अलसुबह से काम पर है। इतने अफसर है पर मेला क्षेत्र की बुनियादी समस्याएं हल नहीं हो पा रही है।
राजनीति में अराजकता देखने में आती है प्रशासन में पहली बार दिखी है।