प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

*सवालो के घेरे मे प्रभारी मंत्री … *

भूपेन्द्र सिंह को सिंहस्थ का प्रभार इसलिए दिया गया था कि वे अपनी प्रशासनिक क्षमता से समय पूर्व तैयारी कराए तथा साधू संतो के साथ समन्वय बनाकर सिंहस्थ के आयोजन को सफल करे। साधु संतो के साथ तो प्रभारी मंत्री ने समन्वय बना लिया है अखाड़ो के भी वे प्रिय बन गए है परंतु स्थानीय जनप्रतिनिधियो के साथ वे समन्वय नहीं बना पाए है मेला प्रशासन में जनप्रतिनिधियो की जमकर उपेक्षा हो रही है। पार्टी संगठन भी दरकिनार है मंत्री जी गाड़ी में तो संगठन को बैठा लेते है लेकिन बैठको से दूर रखते है। पता नहीं ऐसा किसके निर्देश पर हो रहा है। मंत्री जी की कार्यप्रणाली भी सवालो के घेरे में है। लंबी लंबी बैठके होती है पर जमीनी हालात फिर भी जस के तस है। शौचालय मुसीबत बनने बाले है। अनुभवी अधिकारी मानते है की शौचलय सब गुड़ गोबर कर देंगे 3500 कऱोड़ के काम शौचालय की दुर्गन्ध में दब जायेगे । सवाल सी एम की छबि का भी है। मंत्री जी का रुतबा भी सवालो में है उनके निर्देश सर्किट हाउस के बाहर दम तोड़ रहे है। उनके स्टाफ का फ़ालौअप नदारत है। अब जबकि सिंहस्थ पर है बुनियादी काम पर अटेंशन जरुरी है। पानी शौचालय और लाइट की व्यवस्था युद्ध स्तर पर होनी चाहिए। मेला क्षेत्र को मच्छरों से भी बचाना जरुरी है। सिर्फ बैठक से काम नहीं होगा खुद खड़े होकर मंत्री जी को काम करना पड़ेंगे। स्थानीय समन्वय भी बनाना होगा तभी अच्छा परिणाम आएगा नहीं तो आप तो चले जायेगे पर सी एम साहब की छबि दाँव पर लग जायेगी। मंत्री जी को सर्किट हाउस से बाहर निकालना पड़ेगा और निजी आस्थाओ के आलावा भी अन्य संतो के बारे में सोचना पड़ेगा।