देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

खाते की खता और जमा का जुर्म।।

खाता तो है,पर बैंक में नहीं, किराने की दुकान पर,
सुनार के यहाँ,साहूकार की पेड़ी पर,
चाय वाले के यहाँ,लिख लेना कहने से ही काम चल जाता है,
भला हो मोदीं जी का रोज रोज खाता खोलने की ताकीद कर रहे है,अब उन्हें कोन बताए की साहब खाता है।
खाता है पर एक खता हो गई है ससुरा बैंक में नहीं है, अब लगाओ लाइन और आधार, लेकर बैठो बैंक में खाता खुलवाओ और जमापूंजी जमा कराओ, साला जमा करना भी जुर्म हो गया है।
साहब का हुक्म है गांठ का पैसा निकालो, घरवाली बाहरवाली,ने जो पैसा छिपाया है बाहर लाओ बैंक में जमा कराओ और लाइन में लगकर जय जय कार करो।
साहब को पता नहीं है गांव,में टोले मजीरे में मुहल्ले में घर में लुगाई की गांठ में और सेठ बा के ठाठ में इतना है कि हम रिसेशन में भी शादी व्याब करते रहे,नुकता घटा करते रहे। साहब हमारी उधार की अर्थव्यवस्था नोट, वोट,और चोट तीनो देती है।
रिश्तें,नाते,लेन देन,सगुन,दक्षिणा,सब के सब काम इससे होते है।
साहब बैंक को बीच में ले आए अब साला चश्मिश मैनेजर को सलाम करो गार्ड को भैय्या दादा बोलो,कैशियर को साहब कहो तब कही रोकड़ा मिले। इतने पर वार त्यौहार अलग। खाते की खता पर हमारे जमा का जुर्म,मन मसोज रहे है बस।
साहब काम तो अच्छा है पर कारिंदे बिगाड़ा कर रहे है। गांव,शहर,को समझ कर लोकल,ग्लोबल के अंतर को जानकर आगे बडो तो ठीक वरना आपकी और हमारी जै राम जी की।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline