देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम से

अब राहुल गांधी “एंग्री यंगमैन” बनना चाहते है।

नई दिल्ली। ग़ालिब और बशीर बद्र के शेर, बोलकर राहुल गांधीं उत्तरप्रदेश से अपनी छवि को बदलने की मुहिम पर है। बोलूंगा तो भूकंप आ जायेगा,नोटबंदी को सबसे बड़ी आर्थिक लूट बताकर राहुल आम आदमी की भाषा में एंग्री यंगमैन की छवि बनाना चाहते है। सिनेमा के एंग्री यंगमैन अमिताभ के गानों को भी राहुल के भाषणों का हिस्सा बनाया जा रहा है। राहुल के रणनीतिकारो ने मोदी से मुकाबिल होने के लिए अब एंग्री यंगमैन की छवि पर भरोसा जताया है। 

भारतीय राजनीति में व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एंग्री यंगमैन की छवि सर्वाधिक लोकप्रिय रही है। चंद्रशेखर,अटल बिहारी वाजपेयी,जार्ज फर्नाडिस, अपने समय के एंग्री यंगमैन रहे है।
इन नेताओं को सुनने के लिए उस समय भी लाखों की भीड़ जुटती रही है।
अपार लोकप्रियता प्राप्त सरकारों के खिलाफ जनमत खड़ा करने के लिए एंग्री यंगमैन छवि के नेताओ को ही सफलता मिलती रही है।
सत्तर के दशक में अमिताभ बच्चन की फिल्में कालाबाजारी,माफिया,तस्करी और अन्याय के खिलाफ होती थी जिसमे अमिताभ ऊर्जावान गुस्सेल नायक के रूप में हमेशा जीत हासिल करते थे। यह छवि जनमानस को खूब पसंद आती थी और इसे सिनेमा के जानकारों ने एंग्री यंगमैन छवि का नाम दिया।
राहुल के सलाहकारो ने जमीनी हकीकत से रूबरू होने के बाद अब उनके लिए छवि प्रबंधन किया है।
दस जनपथ से जुड़े सूत्र बताते है कि राहुल की टीम पिछले दो माह से उनके लिए अलग छवि बनाने की कवायद शुरु की है। आम आदमी की भाषा में बात करना,युवा वर्ग के मुहावरे इस्तमाल करना तथा चुटीली भाषा में जुमले अब राहुल के भाषण का
हिस्सा बनने लगे है।
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश से ही हमेशा राष्ट्रीय नेता की छवि बनती है। मोदीं जी को भी गुजरात छोड़कर बनारस आना पड़ा था।
बहरहाल अब राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को एहसास हो गया है कि जमीनी हकीकत जाने बिना,जड़ो से जुड़े,बिना और आम आदमी की भाषा बोले बिना नेतागिरी नहीं चल पायेंगी।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline