देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेभोपालमध्य प्रदेश

।।”अकेले” शिवराज।।

एक तरफ किसान – एक तरफ शिवराज सिंह चौहान। भाजपा का संगठन दर्शक दीर्घा में। मंत्री अपने अपने बंगलो में बंद। सांसद, विधायक,पंचायती राज के प्रतिनिधि,पंच, सरपंच सब के सब सुरक्षित जगहों पर दुबके। अकेले शिवराज श्यामला हिल्स से पूरे प्रदेश को कंट्रोल करने में लगे रहे। संगठन का फ़ीडबैक नदारत। संगठन के अलंबरदार गायब। गिने-चुने पदाधिकारी ही सक्रिय है। बाकी तमाशबीन।
किसान मोर्चा फैल,किसान संघ फैल,किसानों की राजनीति कर पदों पर बैठे नेता फैल। जिलों के प्रभारी मंत्री निष्क्रिय।
शिवराज एकदम अकेले मुख्यमंत्री निवास से अफसरों के भरोसे जमीनी जानकारी लेते रहे। गृह मंत्रालय नाकाम रहा। ख़ुफ़िया अमला सही सूचनाएं नही दे पाया। जिम्मेदार अफसर कमजोर फ़ीडबैक के भरोसे शिवराज को गफलत में रखते रहे। मंदसौर की घटनाओं की सतही रिपोर्टिंग हुई। कलेक्टर, एस. पी, मुगालते में रहे।
मंदसौर में एक से बढ़कर एक कद्दावर भाजपा नेता है। सब के सब नाकाम। जिलाध्यक्ष खुद बड़े किसान नेता। अब पर्दे के पीछे साजिश की बू आने लगी है।
किसानों के गुस्से का गुबार उतर रहा है। इस गुबार में छिपे चेहरे शक्ल लेने लगे है।
शिवराज के लिए भी आत्म-अवलोकन का समय। सरकार का संगठन के साथ निचले स्तर पर कितना समन्वय है। कार्यकर्ताओं से कितना संवाद है। सत्ता की पंजीरी कौन खा रहा है। कौन दरकिनार है। देव दुर्लभ कार्यकर्ता का रुख क्यो बदल रहा है। जिन लोगों ने सत्ता की मलाई खाई है वे कहा छिप गए है। क्या उनकी इतनी भी हैसियत या विश्वसनीयता नही है कि वे किसानों के बीच जाकर दमदारी से संवाद कर सके।
शिवराज ने किसानों के लिए जो भी किया है वो मिसाल है। फिर भी नाराजगी संमझ के परे है।
किसान आंदोलन शिवराज को अस्थिर करने की साजिश लगता है। किसान संगठनों की अराजकता,किसान नेताओं का अहम,भाजपा संगठन की नाकामी और पुलिस-प्रशासन की अनदेखी से उपजा यह आंदोलन सतही तौर पर चेहरा विहीन था पर जैसे जैसे गुबार उतरेगा, चेहरे और उनके पीछे का मंतव्य भी सामने आने लगेगा।
बहरहाल अब शिवराज को आत्म-अवलोकन कर सत्ता की सम्यक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए,नही तो भाजपा के देव दुर्लभ कार्यकर्ता किसी को भी “पूर्वज” बनाने में सक्षम है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline