देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

हकीकत और सपने की लड़ाई में उलझा कांग्रेस के चहरे का मुद्दा।

भोपाल।दादी (राजमाता सिंधिया)ने साठ के दशक में ताकतवर मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र से उनके द्वारा छात्र आंदोलन को बेरहमी से कुचनले के मुद्दे पर सीधी लड़ाई लड़कर कांग्रेस की जड़ में मठा डाला था,उसी के परिणामस्वरूप आज भाजपा प्रदेश में राज कर रही है।
अब पोता(ज्योतिरादित्य सिंधिया) कांग्रेस की जड़ में संजीवनी डालने के लिए बेताब है। दादी के पास छात्र आंदोलन का मुद्दा था तो पोते के पास किसान आंदोलन का अवसर है।
महाराज का अब जननेता के रूप में रूपांतरण हुआ है। मध्यप्रदेश में भड़के किसान आंदोलन को लपकने के लिए महाराज और नेताओं के नेता कमलनाथ में होड़ मची हुई है।
महाराज ने राजसी वैभव को त्याग कर भोपाल में सत्याग्रह किया, अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम स्थगित कर वे सीधे खेत खलियान में पहुंच गए।
मंदसौर में गोलीकांड में मारे गए किसानों के घर गए,गांव गांव में घूमे,चौपाल लगाकर किसानों की समस्याएं जानी,और निराकरण की पहल करते हुए सीधे मोदी को पत्र भी लिख दिया।
कमलनाथ 1980 से प्रदेश की राजनीति में है। उनकी वरिष्ठता उनको सर्वमान्य बनाती है,लेकिन कांग्रेस में जमीनी मेहनत को लेकर उनके नाम पर असमंजस है।
कमलनाथ की लकदक जीवनशैली और उनका अभिजात्य व्यक्तित्व उनके जननेता बनने में बड़ी बाधा है।
महाराज जमीनी हकीक़त जान चुके है। इसलिए उन्होंने अपने रोजमर्रा की जीवनशैली और कार्यशैली में सकारात्मक बदलाव किए है।
प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व की लड़ाई जहां सिंधिया और कमल नाथ के बीच सिमट गयी है।
कमलनाथ सोशल मीडिया पर तो सक्रिय हुए हैं लेकिन जमीन पर सिंधिया ज्यादा तेज दौड़ते और मेहनत करते नजर आ रहे हैं। खलघाट में भी कामलनाथ सिर्फ 5 घण्टे के लिए आए
दूसरी ओर सिंधिया अपने मध्यप्रदेश के दौरों में ना अपना स्वागत करवा रहे हैं, ना माला पहना रहे हैं। मन्दसौर गोलीकाण्ड के बाद किसानों की लगातार आत्महत्याओं के बीच उन्होंने अपने समर्थकों को किसी तरह का स्वागत ना करने के स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं।
ऐसा करके नैतिक रूप से सिंधिया ने अपने आपको किसान आंदोलन में कांग्रेस के अपने समकक्ष नेताओं के साथ मुख्यमंत्री शिवराज से भी बढ़त हासिल कर रखी है।
बहरहाल कांग्रेस आलाकमान के सामने मुख्यमंत्री शिवराज और भाजपा से दो दो हाथ करने के लिए सीमित विकल्प है।
यह देखना खासा दिलचस्प होगा कि दस जनपथ जमीनी हकीक़त को तव्वजो देता है या हवाई सपनों को तरजीह देता है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline