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संसदीय कार्य विभाग का परिपत्र, विधानसभा को पंगु बनाने और विधायकों के विशेषाधिकार का हनन जवाबदेही से बचने के लिए जारी परिपत्र तत्काल वापस ले सरकार नेता प्रतिपक्ष श्री अजय सिंह ने की मांग

 

भोपाल, 24 अप्रैल 2018, नेता प्रतिपक्ष श्री अजय सिंह ने भाजपा सरकार पर लोकतंत्र का गला घोंटने, विधानसभा जैसी संस्था को पंगु बनाने और जन-प्रतिनिधियों के विशेषाधिकार हनन करने का आरोप लगाया है। श्री सिंह ने कहा कि 21 मार्च 2018 को संसदीय कार्य विभाग ने जो परिपत्र सभी विभागों को जारी किया है उसमें निर्देशित किया है कि विधानसभा में ऐसा कोई उत्तर मंत्रियों से न दिलवाया जाए जिससे उनकी जवाबदेही तय हो। श्री सिंह ने कहा कि प्रदेश की विधायिका के लिए विधानसभा की नियम समिति के प्रावधानों के बाद अब इसके जरिए सरकार ने विपक्ष की आवाज दबाने और विधानसभा का महत्व खत्म करने की साजिश रची है। श्री सिंह ने मुख्यमंत्री से तत्काल इस परिपत्र को वापस लेने की मांग की है।
नेता प्रतिपक्ष श्री सिंह ने कहा भाजपा एक फासिस्टवादी पार्टी है। वह ऐसी किसी भी लोकतांत्रिक संस्था को पसंद नहीं करती जो उससे सवाल पूछे और उसे इसका जवाब देना पड़े। श्री सिंह ने कहा कि हाल ही के बजट सत्र में शिवराज सरकार ने विधानसभा की नियम समिति के जरिए विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव रखने, विधायकों के प्रश्न पूछने के संबंध में ऐसे प्रावधान किए जिससे विपक्ष के अधिकार ही समाप्त हो जाएं। मीडिया और विपक्ष के दबाव में विधानसभा को अंततः वे प्रावधान वापस लेना पड़े। इसके बाद 21 मार्च याने विधानसभा सत्र खत्म होने के दिन ही संसदीय कार्य विभाग ने एक ऐसा परिपत्र सभी विभागों को भेजा जो विधानसभा की मूलभावना को आघात पहुचाता है, इस परिपत्र में विभागों से कहा गया है –
“विभागीय अधिकारी प्रश्नों के उत्तरों की संरचना, प्रश्नों की अन्तर्वस्तु की गहराई से विवेचना करें तो आश्वासनों की व्यापक संख्या में काफी कमी आ सकती है। मंत्रियों को प्रत्येक विषय पर आश्वासन देने में बड़ी सतर्कता बरतना होती है। यदि किसी विषय पर आश्वासन दे दिया जाए तो यथाशीघ्र उसका परिपालन भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अतः अपेक्षा की जाती
“नियमावली के अनुबंध डी में आश्वासनों के वाक्य तथा रूप की सूची दी गई है। यह शब्दावली उदाहरण स्वरूप है। विधानसभा सचिवालय सदन की दैनिक कार्यवाही में से इसके आधार पर आश्वासनों का निःस्सारण करता है। अतः विधानसभा सचिवालय को भेजे जाने वाले उत्तर/जानकारी को तैयार करते समय इस शब्दावली को ध्यान में रखा जाए तो अनावश्यक आश्वासन नहीं बनेंगे।”
इसके साथ जो सूची लगाई गई है उसमें 34 शब्दावली की लिस्ट लगाई गई जिससे बचने को कहा गया है, जैसे- मैं उसकी छानबीन करूंगा, मैं इस पर विचार करूंगा, सुझाव पर विचार किया जाएगा, रियायतें दे दी जायेंगी, विधिवत कार्यवाही की जाएगी, जैसे वाक्यों का इस्तेमाल नहीं करने की हिदायत विभागों को दी गई है।
स्पष्ट है सरकार इसके बहाने विपक्ष की आवाज को दबाने और लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर विधानसभा को पंगु बनाने की तैयारी कर रही है।
नेता प्रतिपक्ष श्री सिंह ने कहा कि पिछले 14 साल में भाजपा सरकार ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया है। यहाँ तक कि विधानसभा एक साल में निर्धारित सत्रों की अवधि को ही पूरा नहीं करती। मनमाने तरीके से सत्र को खत्म कर दिया जाता है। अफसोसजनक यह है कि विधानसभाध्यक्ष इन घटनाओं में मूक दर्शक बने हैं। उन्हें विधानसभा को कमजोर करने की कोशिशों और विधायकों के अधिकारों के हनन का पुरजोर विरोध करना चाहिए, पर वे सरकार के साथ खड़े नजर आते हैं। इससे एक ओर जहां वे अपने दायित्वों के प्रति विश्वासघात कर रहे हैं वहीं विधानसभाध्यक्ष के पद की गरिमा को भी खत्म कर रहे हैं।