नई दिल्ली। भारत रत्न डॉ. विश्वेश्वरैया की इंजीनियरिंग की अनुपम कृति कर्नाटक विधानसौध के सामने खड़े होकर भाजपा और खासकर मोदी विरोधी विपक्ष ने नए राजनीतिक-गठबंधन की इंजीनियरिंग का नमूना पेश कर मोदी सरकार को 2019 के लिए चुनौती दी है। सवाल खड़ा होता है कि इस गठबंधन का नेता कौन होगा?, और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस कितनी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी?।
हालांकि अभी यह गठबन्धन कर्नाटक में मोदी और भाजपा को रोकने की खुशी में सहज भाव से सामने आया है,अभी इसके राजनीतिक और चुनावी निहितार्थ सामने आना बाकी है ,फिर भी सवाल उठना लाज़मी है कि ज्यादातर क्षेत्रीय और परिवार संचालित दलों के गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा?। राष्ट्रीय दल कांग्रेस को यह दल कितनी लोकसभा सीटे देंगे।
आइए समझने की कोशिश करते है।
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन बुआ-बबुआ के रिश्तों की डोर में फल फूल रहा है,गोरखपुर-फूलपुर में इसने अपनी ताकत भी दिखा दी है। राजनीतिक और चुनावी प्रबंधन की दृष्टि से यह गठबंधन भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें कांग्रेस भी शामिल है,अखिलेश और मायावती दोनो खुद को प्रधानमंत्री पद के किए उपयुक्त मानते है, ऐसे में दोनो दल उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को कितनी लोकसभा सीटे देंगे।
सपा-बसपा गठबंधन के नेता कांग्रेस को 5 सीटों के लायक मानते है। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने को बेताब कांग्रेस क्याइतनी सीटों पर राजी होगी।
उत्तरप्रदेश के तमाम बड़े नेता कांग्रेस के अकेले लड़ने के पक्ष में है।
विपक्षी गठबंधन में दूसरे बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को कितनी सीटे देने वाली है जबकि वे राहुल को अनुभवहीन बता चुकी है, और खुद को मोदी का सबसे बेहतर विकल्प मानती है।
आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू हमेशा से प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे है वे अपने राज्य में कांग्रेस कितनी हिस्सेदारी देंगे,जबकि आंध्र में कांग्रेस की उनके मुकाबले में है।
केरल में वामपंथी कांग्रेस के लिए स्पेस छोड़ने को तैयार नही है,तेलंगाना में भी यही हाल है हाँ बिहार में लालू कांग्रेस के साथ उदारता दिखा सकते है।
दिल्ली में केजरीवाल भी कांग्रेस से मुकाबिल है वे कैसे बँटवारा करेंगे देखना होगा।
तमिलनाडु में कमल हासन अभी प्रस्थान बिंदु पर है उनका राज्य में कितना प्रभाव है अभी देखना बाकी है।
अजित सिंह अमरबेल नेता है किसी तने से लिपटकर ही जिंदा रह सकते है। महाराष्ट्र में शरद पंवार कांग्रेस को बी टीम ही रखना चाहेंगे।
जिसके शपथ समारोह में विपक्षी गठबंधन दिखाईं दिया क्या वे कुमारस्वामी कांग्रेस के लिए उदारता दिखा सकते है,जबकि वे स्वयं को प्रधानमंत्री के सबसे योग्य उम्मीदवार के रुप में प्रस्तुत करने वाले है।
यदि बिहार,यूपी,पश्चिम बंगाल,आंध्रप्रदेश, कर्नाटक,महाराष्ट्र ,तेलंगाना,केरल में कांग्रेस दोयम दर्जे की पार्टनर रहती है तो कैसे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना पाएगी।
अब सवाल विपक्षी गठबंधन के नेता का है। क्या भारत का मतदाता ममता,मायावती, चंद्राबाबू,कुमारस्वामी,शरद पंवार पर भरोसा कर सकता है। हाँ अखिलेश यादव जरूर इन सबमे सबसे ज्यादा स्वीकार्य चेहरा है।
इस विपक्षी गठबंधन से गलबहियां कर रही कांग्रेस मध्यप्रदेश, गुजरात,राजस्थान, हिमाचल, असम,उड़ीसा से कितनी सीट जीत सकती है।यहाँ भी उसे गठबंधन के सहयोगियों को संम्मान देना पड़ेगा।
वोट प्रतिशत और आंकड़ेबाजी के आधार पर गठबंधन में सीटों का बंटवारा होगा तो कांग्रेस घाटे में ही रहेंगीं।
कांग्रेस की राजनीति के जानकार कहते है कि पार्टी को पूरे देश मे अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए तभी राहुल की छवि मोदी के बेहतर विकल्प की बन सकेगी वरना दोयम दर्जे के पार्टनर बनकर तो कांग्रेस सिमट जाएंगी।
देखते है राहुल कौन सी राह पकड़ते है।
प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com