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भारतीय छात्रों की पहली पसंद अभी भी डॉक्टर-इंजीनियर ही बनना

 नई दिल्ली। तेजी से बदल रही दुनिया में भले ही रोजगार के नित नए विकल्प सामने आ रहे हैं लेकिन इस मामले में भारतीय छात्रों की पहली पसंद अभी भी डॉक्टर या इंजीनियर का पेशा अपनाने की ही है। देश के करीब 62 फीसदी छात्र पढ़ाई के बाद इन्हीं क्षेत्रों में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं।

इनमें करीब 40 फीसदी इंजीनियर बनना चाहते है, जिसमें 16 फीसदी सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने की चाहत रखते है। करीब 23 फीसदी छात्र डॉक्टर बनकर अपना कॅरिअर बनाना चाहते हैं।

हालांकि भारतीय छात्रों में वैज्ञानिक बनने का भी रुझान तेजी से बढ़ा है। करीब नौ फीसदी भारतीय छात्र वैज्ञानिक बनना चाहते है। भारतीय छात्रों की रोजगार से जुड़ी चाहत का यह खुलासा दुनिया के तमाम देशों की शैक्षणिक गतिविधियों का अध्ययन करने वाली एजेंसी कैंब्रिज असेसमेंट के सर्वे में हुआ है।

भारत सहित दुनिया के दस देशों को लेकर वर्ष 2018 में कराए इस अध्ययन में एजेंसी ने भारतीय छात्रों के रुझान में बदलाव का दावा किया है। कहा है कि अब रट्टा मारकर सीखने की संस्कृति छोड़कर विद्यार्थी ऐसी संस्कृति की ओर बढ़ रहे है, जो समग्र बाल विकास पर केंद्रित है।

अतिरिक्त गतिविधियों में सक्रिय

इसके साथ ही अतिरिक्त गतिविधियों से जुड़ाव के मामले में भी भारतीय छात्र दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले काफी सक्रिय है। करीब 72 फीसदी भारतीय छात्र पढ़ाई के साथ-साथ वाद-विवाद, साइंस क्लब, कला और बुक क्लब जैसी गतिविधियों में शामिल रहते हैं।

74 फीसदी खेलते हैं नियमित

वहीं इसके अलावा 74 फीसदी भारतीय छात्र नियमित रूप से कोई न कोई खेल खेलते हैं। इसमें 37 फीसदी बैडमिंटन, 30 प्रतिशत फुटबाल और 30 फीसदी का क्रिकेट पसंदीदा खेल है। पांच फीसदी बनना चाहते हैं लेखक या पत्रकार सर्वे में इसके अलावा भारतीय छात्रों ने जिन क्षेत्रों में भविष्य संवारने को लेकर अपनी उत्सुकता जाहिर की है, उनमें पांच फीसदी से अधिक छात्रों ने लेखक या पत्रकार बनने को लेकर भी रुचि जताई है।

वहीं पढ़ाई के बाद अपना खुद का उद्योग शुरू करने को लेकर करीब सात फीसदी छात्रों ने रुचि जाहिर की है।गौरतलब है कि एजेंसी ने यह सर्वे दस देशों के करीब 20 हजार शिक्षकों और छात्रों के बीच यह सर्वे कराया है। इसमें भारत के भी करीब 44 सौ शिक्षक और 38 सौ छात्रों ने हिस्सा लिया था। इनका चयन भी एक खास प्रक्रिया के तहत किया गया था।

तकनीक के इस्तेमाल में पिछड़े

भारतीय छात्र और स्कूल अभी भी तकनीक के इस्तेमाल में चीन सहित दूसरे देशों के मुकाबले काफी पीछे है। भारत के ज्यादातर स्कूलों में अभी भी ब्लैक बोर्ड से जरिए ही पढ़ाई हो रही है, हालांकि कुछ स्कूलों में अब स्मार्ट बोर्ड लगाए जा रहे हैं लेकिन चीन, अमेरिका जैसे जैसे देशों में स्मार्ट बोर्ड का इस्तेमाल करीब 43 फीसदी से ज्यादा स्कूलों में हो रहा है।

इन देशों में कराया गया अध्ययन

जिन देशों के छात्रों को लेकर यह अध्ययन कराया गया था, उनमें अर्जेंटीना, चीन, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, पाकिस्तान, स्पेन, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका शामिल थे। इन सभी देशों में यह अध्ययन 12 से 19 वर्ष की उम्र के छात्रों के बीच कराया गया था।