उज्जैनदेशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेफिल्म रिव्यू

कश्मीर फाईल्स ने “हिन्दू विवेक” को जगा दिया है।

विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीरी पंडितों पर फ़िल्म बनाकर उनके दर्द का लोकव्यापीकरण कर दिया है,अभी तक किस्से,कहानियों और मिथकों में कैद सच्ची घटनाओं का रूपांकन पंडितों के साथ हुए बर्बर अन्याय की ठोस गवाही देता है। सनातन परम्परा की कमजोरी रही है सामूहिकता की कमी,मत,मतान्तर,संत,सम्प्रदाय, मान्यताओं और अधकचरी परंपराओं के बरक्स सनातन का प्रतीक हिंदू समुदाय हजारों साल ग़ुलाम बनकर रहा है। कतिपय प्रतिरोधों को छोड़ दिया जाए तो आमतौर पर कभी भी मुगलों और अंग्रजो के खिलाफ पूरा हिन्दू समुदाय कभी खड़ा नही हुआ है।
आज़ादी की लड़ाई में भी एकजुटता और सामूहिकता की कमी के कारण ही सेकड़ो साल बाद आधी-अधूरी सफलता मिली।
हिन्दू या लोकप्रिय संज्ञा में कहे तो भारतीय कभी भी जी जान से आतताइयों के खिलाफ खड़ा ही नही हुआ।
कुछ मुठ्ठीभर लोग संघर्ष करते रहे है।
विवेक अग्निहोत्री की फ़िल्म द कश्मीर फाईल्स ने सबसे बड़ा काम किया है हिन्दू एकजुटता का। बॉलीबुड के सारे भ्रम और अवरोधकों को तोड़कर इस फ़िल्म ने एक नया बाज़ार भी बना दिया है,इस बाजार में वही बिकेगा जो इस देश की जड़ो से जुड़ा होगा,जिसमे सच्चाई होगी और जो कतिपय विविधता के सिद्धांतों को चुनोती देगा।
क्या सारी सदभावना, धार्मिक एकता,सौजन्यता का ठेका हिन्दू समाज का ही है। हमारी सहष्णुता हमारी कमजोरी कब तक मानी जायेगी।
जो लोग इस फ़िल्म के बहाने राष्ट्रीय एकता,प्रेम भाईचारे को नुकसान होने की बात कर रहे है वे यदि केरल,पश्चिम बंगाल, पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ स्थानों पर एक सप्ताह सपरिवार रहकर दिखा दे। हमारे भाई कश्मीरी पंडितों ने जो भोगा है,उसकी कल्पना मात्र से ही सिहरन होने लगती है।
हमारे सिंधी भाईयों ने भी कम जुल्म नही सहे है। आज भी देश के चालीस से ज्यादा अल्पसंख्यक बहुल हिस्से में यही सब हो रहा है,बांग्लादेश से आए हिन्दू आज भी बंगाल और असम में यातनाएँ झेल रहे है।
सवाल है सह आस्तित्व का,क्या यह भाव एकतरफा हो सकता है? एक पक्ष की तमाम ज्यादतियां नजरअंदाज की जाती रहे और एक पक्ष को दबाया जाता रहे,यह कैसे संभव है।
यदि हिन्दू समाज में एकजुटता और सामूहिकता होती तो मुगल, अफगान,डच और अंग्रेज कभी यहाँ नही घुस पाते।
हिन्दू समाज में जातीय, वर्गीय और क्षेत्रीय विभाजन की जो बीमारी है उसी का परिणाम है कि हम राजनीतिक-सांस्कृतिक-वैचारिक गुलामी झेल रहे है।
समग्र हिन्दू समाज और लोकप्रिय संज्ञा में समस्त भारतीयों को कम से कम अपने देश से तो प्यार होना ही चाहिए,रोजीरोटी यहाँ, मरना जीना यहाँ, फिर भी राग-अलगाव आखिर कब तक चलेगा।
यह हिन्दू पुनर्जागरण का दौर है,हम शिव और शक्ति के उपासक है,बहुत परीक्षा हो गई अब परिणाम की बारी है।
इस आलेख को संघ समर्थक समझने वालों से मेरी गुज़ारिश है,मेरे भाव को बगैर राजनीतिक चश्मे से देखे। अपने बच्चों को हम कैसा देश कैसा वातावरण देकर जायेगे सोच ले।
सब कुछ सरकारे नही करेगी समाज की जागृति जरूरी है।
दशकों से राष्ट्रवादी सरकारें है क्या इतिहास का पुनर्लेखन हो गया,क्या पाठ्यक्रम बदले गए,क्या सामाजिक धार्मिक समानता लागू हो पाई,एक नागरिक संहिता तक हम नही बना सके।
कारण व्यवस्था मे जो रंगे सियार है उनके आचरण में कथनी और करनी का फर्क है।
यह फर्क तभी मिटेगा जब समाज एक साथ खड़ा हो जाएगा।
हमे ज्यूस यानी युहदी संयदाय से सीखना चाहिए जिन पर दुनिया के सबसे ज्यादा बर्बर अत्याचार हुए।
समय आने पर पूरा युहदी संयदाय एकजुट हुआ और पिछले 70 सालों में उसने दुनिया की 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्था, दुनिया के ताकतवर संस्थानों,और नीति निर्णायक निकायों में कब्जा जमा लिया है। सारे सामरिक अविष्कार उनके नाम है।
युहदी ख़ुद को ईश्वर की संतति मानते है,मुस्लिम अपने को अफजल कहते है,हम भी सप्तऋषियों की संतान है,फिर हम कमजोर क्यो है।
बस यही से सोचना शुरू करना है।
यह आलेख किसी से विरुद्ध नही है,अपने को जगाने के लिए है जो मेरा अधिकार है।

प्रकाश त्रिवेदी
संपादक
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