सार
विस्तार
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पहली सूची में मालवा-निमाड़ की जिन 11 सीटों पर टिकट घोषित किए हैं, उसमें सिर्फ एक ही मापदंड चला और वह यह कि जिसमें चुनाव जीतने की सबसे ज्यादा संभावना है उसे टिकट दे दो। यही कारण है बाकि सब बातों को नजरअंदाज कर हारे हुए उम्रदराज और पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले नेता भी उम्मीदवार बनाए गए हैं।
2018 के चुनाव में शिकस्त खाने वाले कई नेताओं को भाजपा ने फिर से दांव पर लगाया है, वहीं कुछ विधानसभा क्षेत्रों में पूर्व में विधायक रहे नेताओं पर भरोसा जताया है। कुछ नए चेहरों को भी मौका दिया गया है। भाजपा उम्मीदवारों के चयन में कई महीनों से विधानसभा वार दौरे कर रहे सह संगठन मंत्री अजय जामवाल के फीडबैक, अलग-अलग प्रांतों से भेजे गए विस्तारकों की रिपोर्ट और पिछले एक महीने से सक्रिय गुजरात की टीम की अहम भूमिका रही है।
राऊ में मधु वर्मा को ही सबसे मजबूत माना, नजर मिलिंद महाजन की भी थी
आधे शहरी और आधे ग्रामीण मतदाताओं वाले राहु विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने मधु वर्मा को फिर से मौका दिया है। वर्मा मैदानी नेता हैं, कई बार इंदौर नगर निगम में पार्षद रहे इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की कमान भी संभाली। 2018 में वे जीतू पटवारी से चुनाव हार गए थे। इस बार वर्मा की उम्मीदवारी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा उनकी उम्र को माना जा रहा था, लेकिन जीत की सबसे ज्यादा संभावना उन्हीं में पाए जाने के बाद पार्टी ने उन्हें एक बार फिर मौका दे दिया। यहां से दो बार के विधायक जीतू पटवारी एक बार फिर मैदान में आ सकते हैं। वैसे यह चर्चा भी है कि जीतू इस बार किसी और विधानसभा क्षेत्र से मैदान संभालें। वर्मा को शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अच्छी पकड़ वाला नेता माना जाता है। राऊ सीट पर भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष पूर्व विधायक जीतू जिराती, आईडीए अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बेटे मिलिंद महाजन की नजर भी थी, लेकिन वर्मा की उम्मीदवारी की घोषणा से उनके मंसूबों पर पानी फिर गए।
सांवेर से विधायक रहे सोनकर को सोनकच्छ भेजा
भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची में पार्टी नेतृत्व ने कई चौंकाने वाले निर्णय लिए हैं। देवास जिले की सोनकच्छ सीट से पार्टी ने तमाम पूर्वानुमान को झुठलाते हुए इंदौर जिला भाजपा के अध्यक्ष राजेश सोनकर को टिकट दिया है। यहां से देवास के सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी पूर्व विधायक राजेंद्र वर्मा मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त निगम के अध्यक्ष सावन सोनकर और देवास के भाजपा नेता सुदेश सांगते का नाम भी उम्मीदवारी की दौड़ में था। सोनकर 2013 में शामिल से विधायक चुने गए थे। 2018 में तुलसी सिलावट से हार गए थे। जब सिलावट कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए और उपचुनाव में उम्मीदवार बनाए गए तब सोनकर को पार्टी का जिलाध्यक्ष बनाकर संतुष्ट किया था। इस बार फिर सांवेर से टिकट के दावेदार थे पर सिलावट के सामने उनका दावा कमजोर माना जा रहा था। सोनकर को सोनकच्छ भेज कर पार्टी ने सिलावट का काम भी आसान कर दिया है। सोनकर विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा में सक्रिय हुए और संघ के भी बेहद निष्ठावान माने जाते हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से भी उनके मधुर संबंध हैं। यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन सिंह वर्मा की उम्मीदवारी तय है। सोनकर के भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में आने के बाद यहां का मुकाबला बहुत रोचक हो जाएगा।
साल भर पहले भाजपा में आए आज मेव को महेश्वर से मैदान में उतारा
महेश्वर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री और राज्यसभा सदस्य रही विजयलक्ष्मी साधौ का परंपरागत निर्वाचन क्षेत्र हैं। पहले उनके पिता सीताराम साधौ और 1984 के बाद से खुद विजयलक्ष्मी यहां से कई चुनाव जीती है। 2018 में भाजपा ने जब यहां से मेव की उम्मीदवारी को ना करते हुए भूपेंद्र आर्य को टिकट दिया था तो मेव बागी होकर चुनाव लड़ लिए थे। उनके मैदान में होने के कारण भाजपा को यहां शिकस्त खाना पड़ी थी। मेव यहां से दो बार विधायक रहे हैं एक बार में उपचुनाव जीते थे और दूसरा 2013 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के सुनील खांडे को हराया था। साल भर पहले हुए नगरीय निकाय चुनाव के दौरान मेव की भाजपा में वापसी हुई थी और तभी से उन्हें टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। हालांकि भाजपा का एक बड़ा धड़ा यहां से उनकी दावेदारी का विरोध कर रहा था।
झाबुआ से पांच साल में दूसरी बार भानू भूरिया को मौका
2018 के विधानसभा चुनाव में झाबुआ में कांग्रेस के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया भाजपा के गुमान सिंह डामोर से चुनाव हार गए थे। डामोर बाद में लोकसभा का चुनाव जीते तो विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उपचुनाव में डॉ. विक्रांत के पिता ने मैदान संभाला और भानू भूरिया को शिकस्त देकर विधानसभा में पहुंचे। भाजपा ने फिर भानू भुरिया पर दांव खेला है और उनका मुकाबला कांतिलाल भूरिया या उनके पुत्र में से किसी एक से हो सकता है। भानू अभी भाजपा के जिला अध्यक्ष भी हैं।
अलीराजपुर में नागर सिंह ही एक बार फिर
नागर सिंह चौहान अलीराजपुर से तीन बार विधायक रहे और 2018 के चुनाव में हार गए। इस बार यह माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें जोबट से मौका दे सकती है, लेकिन कोई मजबूत विकल्प नहीं होने के कारण यहां से एक बार फिर चौहान को ही मैदान में लाया गया है। चौहान की छवि दबंग नेता की है और 2018 के चुनाव में मजबूत सामाजिक आधार वाले मुकेश पटेल ने उन्हें शिकस्त दी थी।
कुक्षी से नया चेहरा जयदीप पटेल चुनाव लड़ेंगे
कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले आदिवासी विधानसभा क्षेत्र कुक्षी से भाजपा ने बिल्कुल नए चेहरे जयदीप पटेल को मौका दिया है। वे रंजना बघेल और मुकाम सिंह किराड़े के नजदीकी रिश्तेदार हैं। यह सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। जयदीप भाजपा के प्रदेश मंत्री हैं और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के खासम खास हैं। यहां से सेवानिवृत्ति सहकारिता संयुक्त आयुक्त जगदीश कनोज, नगर पालिका अध्यक्ष रेलम चौहान, पूर्व विधायक मुकाम सिंह किराड़े भी टिकट के दावेदार थे। पटेल के मैदान में आने से यहां मुकाबला बहुत कड़ा हो जाएगा। कांग्रेस यहां से दो बार चुनाव जीत चुके सुरेंद्र सिंह बघेल हनी को ही फिर मौका देना चाहती है। उनके पिता प्रताप सिंह बघेल भी यहां से कई बार विधायक रहे और 1977 की जनता लहर में भी उन्होंने यहां कांग्रेस का झंडा फहराया था।
लगातार दो चुनाव हारने वाले आत्माराम को फिर कसरावद से दांव पर लगाया
कसरावद से आत्माराम पटेल को तीसरी बार भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। वे 2013 और 2018 में यहां से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। 2008 में उन्होंने इसी सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता सुभाष यादव को शिकस्त दी थी, पर इसके बाद के दो चुनाव में लगातार हारे। यहां भी पटेल का कोई विकल्प नहीं होने के कारण पार्टी को उन्हें फिर से मौका देना पड़ा।
विकल्प ना होने के कारण फिर निर्मला को मौका
पेटलावद सीट पर भाजपा ने एक बार फिर निर्मला भूरिया पर दांव खेला है। वे इस क्षेत्र के कद्दावर आदिवासी नेता रहे दिलीप सिंह भूरिया की बेटी हैं। वे इसी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर भी विधायक चुनी जा चुकी हैं। निर्मला का अभी क्षेत्र में पहले जैसा प्रभाव नहीं माना जाता है, लेकिन यहां भी पार्टी के पास उनका कोई मजबूत विकल्प नहीं होना इस बार भी उम्मीदवारी का कारण बना।
धरमपुरी में कालू सिंह को दूसरी बार मौका
2013 के चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता विक्रम वर्मा की पसंद के कारण कालू सिंह ठाकुर को धरमपुरी से टिकट दिया गया था और वे चुनाव जीते थे। 2018 में मनावर के समीकरण साधने के लिए कालू सिंह का टिकट काटकर गोपाल कन्नौज को धरमपुरी लाया गया। कन्नौज चुनाव हार गए थे। इस बार फिर पार्टी ने कालू सिंह को मौका दिया है।
तराना में फिर ताराचंद पर ही आ टिकी भाजपा
तराना सीट पर तमाम दावों पर विचार करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने 2003 में विधायक रहे तारा चंद गोयल पर ही फिर दांव खेला है। यहां कांग्रेस के महेश परमार के गढ़ में सेंध लगाना आसान नहीं है है। 2018 के चुनाव में परमार ने यहां अनिल फिरोजिया को शिकस्त दी थी जो बाद में उज्जैन से सांसद बने थे।
घटिया सीट पर फिर सतीश मालवीय को आजमाया
घटिया सीट पर सतीश मालवीय को एक अंतराल के बाद फिर मौका मिला है। 2018 में भाजपा ने यहां नया प्रयोग करते हुए कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू के बेटे अजीत बौरासी को टिकट दिया था जिन्हें कांग्रेस के रामलाल मालवीय से हारना पड़ा था। इस सीट पर राज्य सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष प्रताप करोसिया की भी नजर थी। पार्टी ने उनके दावे को नकारते हुए इस विधानसभा क्षेत्र की तासीर से वाकिब मालवीय को ही एक मौका और दिया।