प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

*जिम्मेदारी तय होना जरुरी है *

सीएम साहब की फटकार के बाद आला अफसरान भागे भागे उज्जैन तो आए पर ना किसी के पास समाधान था और ना ही कोई वैकल्पिक प्लान। साहब लोगो ने फेस सेविंग तरीका अपनाकर सारा दोष स्थानीय प्रशासन पर मड दिया । अंदरखाने की खबर है कि प्रशासनिक शिष्टाचार को दरकिनार रख कर लोकल साहबो ने भोपाली साहबो की जमकर खबर ली। शौचालय के मामले में तो विभागीय पी एस कठघरे में आ गए है। निविदा बनाने एवं उसमे अव्यवहारिक शर्ते डालने में साहब लोगो ने अनदेखी की है। अपने लोगो को उपकृत करने के लिए जिम्मेदार विभाग ने उज्जैन से लेकर भोपाल तक गंभीर लापरवाही बरती है। अब सारा दोष स्थानीय प्रशासन पर लगाना अनुचित है।
पानी की समस्या की जड़ भी भोपाल में ही है। तत्कालीन पीएस को पता ही नहीं था की सिंहस्थ क्या होता है। उन्हें यह बिहार के किसी मेले की तरह ही लग रहा था। लिहाज उन्होंने लोड ही नहीं लिया बेचारे तकनिकी अधिकारी फालतू में पिसते रहे । अब नए साहब सकते में है उनके हाथ पाँव फूल रहे है । पानी सप्लाय के प्लान में ही गंभीर मिस्टेक है । अब यह व्यवस्था उज्जैन में पदस्थ रहे पुराने अधिकारियो के जिम्मे करना चाहिए।
सीवर लाइन की बात करना ही बेमानी है। यह समय दोषारोपण का नहीं है समाधान तलाशने का है । मोल्डेड टॉयलेट की बात हो रही है इनकी उपलब्धता कम है तमिलनाडू में बाढ़ आने के कारण बड़ी कंपनिया वहाँ टॉयलेट लगा चुकी है। सेना के एक ऑपरेशन में भी टॉयलेट लगे है। सरकार को अब केंद्र सरकार और स्वच्छता के काम में लगे बड़े एन जी ओ से बात कर समस्या का हल करना चाहिए।
पर यह भी जरुरी है कि गलती किसने की है जबाबदारी तय होना चाहिए।