प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

*लेपटॉप और कागजो पर प्लानिंग *

कल जूना अखाड़े की पेशवाई के साइड इफेक्ट के रूप में पुरे शहर में अराजकता का माहौल नजर आया। पेशवाई का स्वागत कर लोग धन्य तो हुऐ पर उन्हें बेतरतीब यातायात व्यवस्था से भी दो चार होना पड़ा। साहित्य में तो प्रयोगवाद का नाम सुना था यातायात व्यवस्था में इसे पहली बार देखा भी।पिछले रविवार को भी मेला में क्षेत्र में यातायात प्रबंधन दम तोड़ चूका है खुद प्रभारी मंत्री जाम का मजा ले चुके है।

पुलिस महकमा एक साल से यातायात की ट्रेनिंग ले रहा है कागजो पर प्लानिंग बहुत अच्छी है पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी भोपाल तक पसंद किया गया फिर भी चूक हो गई। क्यों? जबाब आसान है सिर्फ थ्योरी पर काम हुआ है प्रैक्टिकल नदारत है उस पर जिन पुलिस बालो को काम में लगाया गया है उनके आदतन व्यव्हार की जाँच नहीं हुई है उन्हें तो वन वे और प्रतिबंधित मार्ग सिर्फ कमाई का जरिया ही नज़र आते है। भीड़ प्रबंधन की आड़ में हवाई योजनाए बनाकर पुलिस के आला अफसरों ने फण्ड तो खूब खर्च किया है लिकिन जमीनी हकीकत में कोई काम नज़र नहीं आ रहा है। पुलिसिया व्यव्हार में संतई की उम्मीद कर रहे लोगों को सावधान होने की जरुरत है। कतिपय पुलिस अधिकारी निजी खुन्नस् के कारण भी योजनाओं पर पलीता लगा रहे है। भीड़ प्रबंधन और यातायात व्यवस्था की समीक्षा और सर्जरी करने की जरुरत है यहाँ सवाल निति से ज्यादा नियत का है।।
पुलिस कप्तान को नए नज़रिये से विचार कर प्लानिंग पर पुनः सोचना होगा पूर्व अनुभव रखने बाले अधिकारियो के निजी आग्रह छोड़कर बुलाना चाहिए। उनके अनुभव का लाभ सिंहस्थ को मिल सकेगा। अब गलती करने का नहीं सुधारने का वक्त है रिस्क लेना महंगा पड़ सकता है।