प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

*झोनों में में अराजकता *

आये थे हरी भजन को ओटन लगे कपास। साधु संतो की सेवा के लिए बनाई गयी झोन व्यवस्था पर यह कहावत सटीक बैठ रही है। झोन ऑफिसो में मजमा लगा रहता है बाहर से आये अधिकारी समझ ही नहीं पा रहे है की उन्हें क्या करना है कैसे करना है काम किससे कराना है।
झोनो में अधिकारी कर्मचारी तो पदस्थ कर दिए है पर उनको यह नहीं बताया गया है की बुनियादी सुविधाओ में कौन सी एजेंसी काम कर रही है उसके क्या क्या काम है उनका प्रशासनिक नियंत्रण किस के पास है।
आदेशो में गंभीर गलतिया है कई झोनो में जरुरत से ज्यादा लोग पदस्थ है। साधु संत अपनी समस्याओ के समाधान के लिए झोन में आते है पर उनकी समस्या का हल किसी के पास नहीं है शौचालय के मामले में समांतर टीम काम कर रही है पेयजल का मामला अफ़लातून अधिकारियो के भरोसे है कनिष्ठ अधिकारियो का दबदबा इतना है की वरिष्ठ भी उनसे निर्देश लेने को मजबूर है।
झोन में आवभगत हो रही है ऑफिस में बहुत से काम भी तत्काल हो रहे पर यह वे काम है जो निजी एजेंसी के अधीन है।
झोनल अधिकारी रात दिन लगे है उनतक समस्याएँ आती है तो वे तत्काल फोन भी लगाते है पर मैदानी अमला किसी की नहीं सुन रहा है। मैदानी अमला सिर्फ चांदी काटने में लगा है। जिन कामो को सरकार करा रही है उनके भी गाहे बगाहे पैसे वसूले जा रहे है।
हर दिन नई व्यवस्था बन रही है इंदौर टीम भोपाल टीम प्रभारी मंत्री की टीम सी एम साहब की टीम सब के सब लगे है पर जमीन पर काम गति नहीं ले रहा है।
यदि आपको अपने केम्प में शौचालय निर्माण कराना हो तो आपको एक अदने से इंजीनियर के चक्कर लगाना होंगे उसके कहने के बाद ही शौचालय निर्माण होगा बाकी अधिकारी फोन लगाते रहेंगे पर काम नहीं होगा।
पहली बार मेला प्रशासन में अराजकता नज़र आ रही है प्रशासनिक नियंत्रण की व्यवस्था में खामी के कारण बदहाली जारी है। यह प्रशासनिक विफलता ही है कि प्रदेश के एक काबीना मंत्री को एक झोन का प्रभार दिया गया है।