प्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

उमा भारती से इतनी बेरुखी क्यों?

उमा भारती उज्जैन आयी,महाकाल के दर्शन किए,अफसरों की बैठक ली,प्रेस से बात की और रवाना हो गईं। प्रशासन ने तो प्रोटोकॉल का पालन किया पर भाजपा नेताओं और संगठन ने बेरुखी बनाए रखी।

उनकी अगवानी में कोई जिम्मेदार भाजपा नेता नहीं आया।सांसद,विधायको ने भी उनसे दुरी बनाए रखी।
अलबत्ता सर्किट हाऊस पर भाजपा अध्यक्ष इकबालसिंह गांधी ने औपचारिक स्वागत की रस्मअदायगी जरूर की।
उमा जी की यात्रा से सवाल खड़ा होता कि संगठन और सत्ताधारी नेताओं ने उनसे दुरी क्यों बना रखी है? इतनी बेरुखी क्यों?।
13 साल पहले उमाजी की अथक मेहनत से ही भाजपा को सत्ता मिली। उसके बाद की कहानी अनकही नहीं है।
पार्टी में आने और उत्तरप्रदेश में सक्रिय होने के बाद प्रदेश में उनके समर्थकों को नया आसियाना तलाश करने में सालो लग गए। उमा जी ने भी पलटकर नहीं देखा।
उनके इसी रवैये के कारण उनके मजबूत साथी उनसे दूर होते गए।
अब जो लोग येन केन प्रकारेण सत्ता या संगठन का सुख ले रहे है वे पुरे मन से उनसे नहीं जुड़ पा रहे है। संगठन और सत्ता के स्थानीय समीकरण भी उन्हें रोकते है।
फिर भी उज्जैन यात्रा में उनके साथ की गईं बेरुखी जायज नहीं है। वे केंद्रीय मंत्री है सांसद विधायको को उनसे मिलना था। क्षिप्रा शुद्धिकरण को गंगा सफाई प्लान में शामिल करने की बात करनी थी। केंद्रीय जल आयोग से क्षिप्रा को राजस्व नदी घोषित करवाना है इस पर बात करनी थी।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के तहत बने पम्प हाऊस बंद है उनपर बात करना थी। उज्जैन के सीवर लाइन प्रोजेक्ट पर बात करनी थी। सप्तसागर विकास के लिए झील संरक्षण योजना लागू करने की बात करना थी।
पता नहीं क्यों उमा जी से बेरुखी जताई गई जबकि केंद्र के कनिष्ठ मंत्रियों तक की अगवानी में भाजपा नेता बिछ जाते है।
बहरहाल उमा जी के कारण आगे बड़े नेताओं ने भी नुगरापन दिखाया।
उमाजी को उज्जैन से लगाव है लेकिन अब उज्जैन के नेताओ को उनसे लगाव नहीं रहा, नुकसान उज्जैन का ही होना है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline