देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

चुनाव परिणामों का डी एन ए टेस्ट।

भोपाल।
उत्तरप्रदेश का चुनाव उन सभी मान्य तरीकों से जीता गया है जो लोकतंत्र में प्रचलित है। जहाँ जाति गत समीकरण बनाए जाना जरूरी था वहाँ ‘अपना दल’ और अन्य जातिगत पार्टीयो को सहयोगी बनाया गया। जहाँ धुर्वीकरण करना ज़रूरी था , वहाँ इसका भी प्रयोग किया गया। कब्रिस्तान और तीन तलाक का मुद्दा चर्चा में लाया गया।
गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों पर फोकस किया गया।
फिर जमावट भी की गयी।
6 क्षेत्र,बनाए गए 100 संगठन मंत्री लगाए गए। संघ के 65 संगठनों के लोग काम पर लगे।
मध्यप्रदेश,बिहार,पश्चिम बंगाल,झारखण्ड, छत्तीसगढ़ के 1000 जातीय गणित के नेता सक्रीय किए गए। हर विधानसभा में दो प्रभारी थे, एक भाजपा के और से एक संघ की और से।
हर बूथ पर 6 माह पहले ही पैड वर्कर की 20 सदस्यीय टीम तैनात की गयी।
मोदी की छवि को मैनेज किया गया। बनारस को सोच समझकर केंद्र बनाया गया। ताकि मिडिया अटेंशन ज्यादा मिले। मिडिया को करीने से मैनेज किया गया।
मोदी की लहर इन सब कारणों से बनी।
अखिलेश ने भी यह सब किया था पर वे ‘लखनऊ एक्सप्रेस वे’ में उलझ गए जो अभी अधूरा है। उन्हें लगा लोग गुंडई,दबंगई भूल जाएंगे। पारिवारिक विवाद ने उनका खेल बिगाड़ दिया।
मायावती सिर्फ चमारों की नेता रह गयी क्योंकि उन्होंने एक भी वाल्मीकि को टिकट नहीं दिया। संघ प्रमुख् इसी को भुनाने वाल्मीकि धाम गए थे। ईरान और सऊदी अरब से धन पाने वाले मुस्लिम संगठनों को वहाँ से कहलवाया गया कि गुण-दोष पर फैसला करे। इसका बहुत असर हुआ।
संघ का समरसता अभियान रंग लाया। अम्बेडकरवादियों को बौद्ध भिक्षुयो ने मैनेज किया। उस पर पिछले 14 साल का कुशासन हावी हो गया। मोदी की उज्जवला योजना,कौशल विकास,स्वच्छ भारत अभियान चल निकले।

उत्तराखंड में काँग्रेस ने जल्दबाजी की । हरीश रावत पर जरुरत से ज्यादा भरोसा किया, रावत से नेताजी प्रभावशाली नेताओं का आसानी से भाजपा में जाने दिया।
काँग्रेस आलाकमान की उत्तराखंड को लेकर सबसे खराब भूमिका रही।
पंजाब में सारे अकाली नशा बेचने में लगे रहे ,भाजपा को भी इसका नुकसान उठाना पड़ा। आप ने खालिस्तान समर्थको से हाथ मिलाकर अपनी संभावना खत्म कर ली। यहाँ अरुण जेटली के अहम के कारण सिद्धू का जाना भी भाजपा को भारी पड़ा।
गोवा में आप ने शुरूआत अच्छी की थी। लेकिन अचानक बार और केसिनो बंद करने की बात कहकर अपनी संभावना समाप्त कर ली। लोगों को लगा ये आ गए तो उनका रोजगार ख़त्म हो जायेगा। भाजपा को पूर्व प्रान्त प्रचारक _सुभाष वेलिंगकर_ की नाराजगी भारी पड़ी।
उनके दल ने भाजपा का नुकसान किया। कांग्रेस पूर्ण बहुमत में आ सकती थी लेकिन वहाँ के प्रभारी दिग्विजय सिंह का शरद पंवार मोह आड़े आ गया और कुछ सीटों पर राष्ट्रवादी कांग्रेस को जीताने के लिए काँग्रेस के कमजोर उम्मीदवार उतारे गए।
मणिपुर में भाजपा ने जबरदस्त तीर मारा है । सारी मेहनत नागा राजपरिवार और वनवासी कल्याण परिषद् की है। यहाँ इसी वजह से कांग्रेस पीछे रह गयी। यहाँ मध्यप्रदेश के भाजपा नेता प्रहलाद पटेल ने काबिले तारीफ भूमिका अदा की ।
यूपी के चुनाव में कांग्रेस को सबक दिया है कि अपने नेताओं की इज़्ज़त करे, दमदार नेताओं को तव्वजो दे ,उनकी सुने और उन्हें अवसर दे। पंजाब में अमरिंदर को यदि नहीं लाया गया होता तो वहां भी परिणाम विपरीत आता। यूपी में यदि कांग्रेस अकेले लड़ती तो उसे कम से कम 40 सीटे मिलती। सपा से गठबंधन ने विपरीत परिणाम दिए ।

  बहरहाल मोदी की छवि,माइक्रो चनाव मैनेजमेंट,कैरम खेल की तरह उम्मीदवारों का चयन, सोशल मीडिया पर बढत जैसे खास कारणों से भाजपा को सफलता मिली है।

प्रकाश त्रिवेदी @ समाचार लाइन