देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

नर्मदा पुत्र अनिल “माधव” में विलीन हो गए।

1992-93 इंदौर में शिरीष सप्रे जी ने एक बेहद जहीन शख्शियत से मिलवाया। संघ प्रचारक अनिल माधव दवे हमसे मुखतिब थे। उस समय संघ के दायित्व के साथ साथ कमर्शियल पायलट की भूमिका में थे। नर्मदा तभी से उनके रग-रग में थी।
इंदौर से वे भोपाल गए, बैरसिया रोड पर संघ कार्यालय में उनसे मुलाकाते होती रही।
समग्र नर्मदा अभियान उनके जेहन से जमीन पर आ चुका था।
उन्होंने नर्मदा यात्रा को खुद जीया। पैदल,सड़क मार्ग से,हवाई जहाज से,नाव से,राफ्टिंग से उन्होंने नर्मदा की परिक्रमा की। नर्मदा का वैज्ञानिक सर्वे कराया। नर्मदा संरक्षण और पर्यावरण को मुद्दा बनाया। विश्व नदी सम्मेलन किया।
नर्मदा संरक्षण की चिंता को संस्थागत रूप दिया। अपने घर का नाम भी “नदी का घर” रखा। नर्मदा उनके लिए राजनीतिक मुद्दा नही थी नर्मदा उनके प्राण में बसती थी।
जब भाजपा ने उमा भारती को भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़वाया तो अनिल जी उनके सारथी बने। चुनाव प्रबंधन के सारे सूत्र उनके हाथ मे थे। उमा जी ने दिग्गज सुरेश पचौरी को हराया। यह सही अर्थों में अनिल जी की रणनीति की ही जीत थी।
यहाँ से उनका राजनीतिक उदय शुरू हुआ। हालांकि वे जनसंघ के मध्यप्रदेश के अध्यक्ष रहे बद्रीलाल दवे के होनहार पुत्र थे। राजनीति उन्हें विरासत में मिली थी। वे गुजराती कॉलेज इंदौर में बेहद लोकप्रिय छात्र नेता भी रहे।
मध्यप्रदेश में उमा भारती की सरकार बनने के बाद उनकी भूमिका बढ़ती गई। सरकार बनाने में उनकी महती भूमिका थी। मिस्टर बँटाढाल का नारा दिग्गी राजा के लिए उन्होने ही गड़ा था।
एक बेहद सफल चुनाव अभियान का “सांवली”(उस समय चुनाव प्रबंधन के लिए बनाए गए कार्यालय का नाम जो शिवाजी से प्ररित था।) से उन्होंने संचालन किया।
सरकार बनने के बाद उन्होंने सुप्त पड़ी जनअभियान परिषद को जिंदा कर दिया। परिषद को लोकमहत्व के मुद्दों से जोड़ा। समग्र नर्मदा अभियान को परिषद का मुख्य एजेंडा बनाया।
शिवाजी से वे बहुत प्रभावित थे। उन्होंने शिवाजी की शासन नीति को आज से जोड़कर एक व्याख्यानमाला भी की। शिवाजी पर उनको सुनना अदभुत अनुभव होता था।
सियासी यात्रा में वे राज्यसभा ने भेजे गए। दूसरी बार राज्यसभा में आने के बाद वे ताकतवर ब्राह्मण नेता के तौर पर उभरे।
सिंहस्थ महापर्व में उन्होंने शंकराचार्य की परंपरा के अनुरूप विचार महाकुम्भ का भव्य आयोजन कराया। तीन माह उज्जैन के पास निनोरा गांव में झोपड़ी बनाकर वे रहे और विचार कुम्भ से वैचारिक अमृत मंथन की तैयारी करते रहे। आयोजनों को यादगार, भव्य और प्रासंगिक बनाने में वे सिद्धहस्त थे।
सिंहस्थ के बाद मोदी जी ने उन्हें पर्यावरण मंत्री बनाया। मंत्रालय में उनकी छाप कदम दर कदम दिखाई देती है।
पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दों को उन्होंने भारतीय हितों के साथ बखूबी से अंतरराष्ट्रीय मंचो पर साझा किया।
आरोप,प्रत्यारोप, आग्रह,दुराग्रह,की राजनीति के इतर उन्होंने सकारात्मक राजनीति की। उनका नाम शिवराज के विकल्प के रूप में भी चला पर कभी भी उन्होंने गुटीय राजनीति नही की। बीते दस पंद्रह सालो में उनका उर्वर दिमाग इतना सक्रिय रहा कि दिल ने साथ छोड़ दिया। अनिल जी के दिमाग ने अथक परिश्रम किया लिहाजा उनका बेकरार दिल अपने माधव में विलीन हो गया।
संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक, मित्र वात्सल्य, हमेशा मददगार,पढ़ने-लिखने वाले,समाज जीवन के निष्णात कार्यकर्ता का जाना अपूरणीय छति है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline