देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम से

यूपी-बिहार उपचुनाव- भाजपा को भाजपा ही हरा रही है।

दिल्ली। “कांग्रेस को कांग्रेस ही हराती है” इस थ्योरी का प्रैक्टिकल अब भाजपा में भी शुरू हो गया है। गोरखपुर,फूलपुर,अररिया में भाजपा की हार के बाद यह सिद्ध हो गया है कि भाजपा ही भाजपा को हरा रही है। कम मतदान और स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं की चुनाव से दूरी इस तथ्य को रेखांकित करती है कि कांग्रेस का फार्मूला लंबी निराशा और इंतजार के बाद भाजपा के देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं ने अपना लिया है।

गोरखपुर में हार के बाद भले ही समाजवादी पार्टी की जीत को भाजपा सपा-बसपा गठबंधन का परिणाम बताए या यह कहे कि गठबंधन को हमने कम आंका। लेकिन हार की मुख्य वजह भाजपा चुनाव प्रबंधन से जुड़े कार्यकर्ताओं की उदासीनता और निष्क्रियता ही है।
जानकार सूत्र बताते है कि सत्ता में आने के बाद भाजपा में नींव के पत्थर माने जाने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा शुरू होती है। कुछ दिन तो कार्यकर्ता सब सहन करता है,अपनी बात नेताओं, संगठन से जुड़े लोगों के सामने रखता है पर जब अति हो जाती है तो गोरखपुर जैसे परिणाम आते है।
उत्तरप्रदेश में वैसे भी कार्यकर्ता का धैर्य कम है उसे सत्ता की पंजीरी का इंतजार है,जबकि उनके हाथ चरणामृत भी नही आ रहा है। दरोगा उसकी सुनता नही है,तहसीलदार भाव नही देता है,ठेके ट्रांसफर पर चाटुकार गिरोह का कब्जा है,ऐसे में उसका गुस्सा सतह पर आना लाजमी ही था।
उत्तरप्रदेश में सत्ता में आने के बाद अमित शाह के पन्ना प्रमुख सिपाही दर दर को भटकने को मजबूर है उनकी पार्टी-संगठन-सरकार में कोई सुनवाई नही है। जब यही कार्यकर्ता सपा शासनकाल में सपा कार्यकर्ताओं पूछपरख से अपनी तुलना करते है तो इनकी निराशा और बढ़ जाती है।
फूलपुर,गोरखपुर इसी निराशा का परिणाम है।
अपनी निराशा की अग्नि में कार्यकर्ताओं ने दिग्गजों के अहंकार को भस्म कर दिया है।
कमोवेश यही स्थिति मध्यप्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ में भी है। भाजपा की सरकार सबका साथ सबका विकास की बात तो करती है पर अपने कार्यकर्ताओं की भरपुर उपेक्षा करती है।
सरकार में जिला-तहसील स्तर पर राजनीतिक नियुक्तियां नही की गई है,हजारों स्थान खाली पड़े है। अर्थ लाभ वाले उपक्रमो में वही लोग मलाई खा रहे जो पुरवर्ती सरकारों में खा रहे थे। चापलूसी,चाटूकारिता का चलन हो गया है। भाजपा पर नियंत्रण रखने वाला संघ पोषित संगठनमंत्री सिस्टम सबसे ज्यादा दूषित हुआ है।
संगठनमंत्रियों पर कार्यकर्ताओं की चिंता लेने का दायित्व भी है लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे-प्यारेलाल खंडेलवाल-बाबा साहब नातू-शालिगराम तोमर की परंपरा के संगठनमंत्रियों ने अपने दायित्व से मुँह मोड़ लिया है। आरामतलब लगझरी जीवन शैली इनका अंग बन गई है।
संगठनमंत्रियों ने पठ्ठावाद के नए आयाम गढ़ दिए है।
बहरहाल भाजपा के थिंक टैंक को जमीनी हक़ीक़त से दो चार होना होगा। मोदी-योगी-शिवराज-बसुंधरा-रमन सिंह लोकप्रिय ब्रांड हो सकते है पर इनके लिए वोट जुगाड़ने का काम देवदुर्लभ कार्यकर्ता ही करते है,सरकार ने अच्छा काम किया है,मुख्यमंत्रियों की छवि अच्छी है,मोदी जी अपरिहार्य नेता है पर कार्यकर्ता जब तक उपेक्षित है तब तक भाजपा लंबे समय तक जीत नही सकती है। यदि लंबे अरसे सत्ता में रहना है देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं को भी सत्ता की पंजीरी का भोग लगाना पड़ेगा।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline.com